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आठवाँ अध्ययन]
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त्रस प्राणियों की । न हिंसिज्जा = हिंसा नहीं करे। सव्वभूएसु = सब प्राणिमात्र पर। उवरओ = हिंसा से उपरत हो । विविहं = नर नारकादि विविध । जगं = जगत् को । पासिज्ज = ज्ञान दृष्टि से आत्मवत् देखे ।
भावार्थ- पृथ्वीकाय आदि पाँच स्थावरों के पश्चात् सूत्रकार कहते हैं कि वचन, काय और मन से त्रस जीवों की भी हिंसा नहीं करे। मुनि संसार के जीव मात्र पर हिंसा भाव से उपरत होकर नर-नारकादि चतुर्गतिक जगत् को ज्ञान-दृष्टि से आत्मवत् देखे । उनके दुःख को अपना दुःख समझे ।
हिन्दी पद्यानुवाद
अट्ठ सुहुमाई पेहाए, जाई जाणित्तु संजए । दयाहिगारी भूसु, आस चिट्ठ सएहि वा ।।13।।
देख आठ इन सूक्ष्मों को, जिनको प्रज्ञा से जाने जो संजय । सोए बैठे या खड़ा रहे, सब भूतों में वह सदय हृदय ।।
अन्वयार्थ-अट्ठ = आठ । सुहुमाई = सूक्ष्म शरीर वाले जीव हैं। जाई = जिनको । पेहाए = बुद्धि से। जाणित्तु = जानकर । संजए = संयमी साधु । भूएसु = प्राणि मात्र पर । दयाहिगारी = दया का अधिकारी होकर । आस = बैठे । चिट्ठ = खड़ा रहे । वा = अथवा । सएहि = शयन करे ।
हिन्दी पद्यानुवाद
भावार्थ-सम्पूर्ण प्राणि जगत् की दया पालने के लिये मनुष्य और पशुओं के समान सूक्ष्म शरी जीवों को भी जानना आवश्यक है । अतः शास्त्रकारों ने बतलाया है कि आठ प्रकार के सूक्ष्म शरीरी जीव हैं जिनको बुद्धि पूर्वक जानकर ही साधु प्राणि मात्र की दया का अधिकारी होता है। जो लोक व्यवहार में देखे जाने वाले स्थूल चेतना वाले जीवों के अतिरिक्त सूक्ष्म जीव और अप्रकट चेतना वाले स्थावर काय के जीवों में जीव तत्त्व नहीं मानते, वे उनकी रक्षा कैसे करेंगे ?
कयराइं अट्ठ सुहुमाई, जाई पुच्छिज्ज संजए। इमाई ताइं मेहावी, आयक्खिज्ज वियक्खणो ।।14।।
हैं कौन-कौन वे आठ सूक्ष्म, पूछे मुनि उनको गुरुजन से । मेधावी और कुशल गुरुवर, हैं वे सब साफ कहें उनसे ।।
अन्वयार्थ-संजए = संयमवान् शिष्य ने । पुच्छिज्ज = पूछा कि । अट्ठसुहुमाई = वे आठ सूक्ष्म जीव । कयराइं = कौन से हैं। जाई = जिनको जानकर साधु दया का अधिकारी होता है । वियक्खणो = विचक्षण । मेहावी = मेधावी गुरु । आयक्खिज्ज = उत्तर में कहते हैं। इमाई ताइं = वे आठ सूक्ष्म ये हैं