________________
202]
[दशवैकालिक सूत्र तहेव मेहं व नहं व माणवं, न देव देवत्ति गिरं वइज्जा।
सम्मुच्छिए उन्नए वा पओए, वइज्ज वा वुट्ठ बलाहइत्ति ।।52।। हिन्दी पद्यानुवाद
वैसे नभ मेघ और मानव को, नहीं कभी देवेन्द्र कहे।
पुद्गल परिणमन और उन्नत, या बरसा हुआ पयोद कहे।। अन्वयार्थ-तहेव = इसी प्रकार । मेहं = मेघ । व = या । नहं = नभ । व = या । माणवं = मानव को। देव देवत्ति = देव-देव ऐसी। गिरं = भाषा। न वइज्जा = नहीं बोले । सम्मुच्छिए = पयोद बादल उमड़ रहे हैं । वा = अथवा । उन्नए = ऊपर उठ रहे हैं अथवा । वा पओए = जल से भरे हुए हैं अथवा । वुट्टबलाहइ = मेघ बरस गया है। त्ति = ऐसा । वइज्ज = बोले।
भावार्थ-वात आदि के समान मेघ आदि के लिये प्रसंग आने पर मेघ, नभ, या मानव को देव-देव ऐसा नहीं बोले, बल्कि मेघ उमड़ रहा है, उन्नत होकर झुक रहा है अथवा अब तो मेघ बरस गया, इस प्रकार साधु निर्दोष भाषा बोले।
अंतलिक्ख त्ति णं बूया, गुज्झाणुचरिय त्ति य ।
रिद्धिमंतं नरं दिस्स, रिद्धिमंतं त्ति आलवे ।।53।। हिन्दी पद्यानुवाद
नभ को अन्तरिक्ष बोले, या देव गमन का मार्ग कहे।
देव ऋद्धिवाले मानव को, ऋद्धिमान् यह वचन कहे ।। __ अन्वयार्थ-अंतलिक्खत्तिणं (अंतलिक्खे त्ति णं) = आकाश के लिये अन्तरिक्ष ऐसा । य = और । गुज्झाणु चरियत्ति = गुह्यक आदि देवों से अनुचरित है ऐसा । बूया = कहे । रिद्धिमंतं = ऋद्धिमान् । नरं = मनुष्य को । दिस्स = देखकर । रिद्धिमंतंत्ति = यह सम्पत्तिशाली है ऐसा । आलवे = कथन करे।
भावार्थ-मेघ या नभ को देव कहने के बदले अन्तरिक्ष और गुह्यकादि देवों का गमनागमन का मार्ग है ऐसा बोले । ऋद्धिमान् या ओजस्वी, तेजस्वी मनुष्य को देखकर यह ऋद्धिमान्, ओजस्वी, तेजस्वी अथवा शक्तिमान् है, इस प्रकार बोले।
तहेव सावज्जणुमोयणी गिरा, ओहारिणी जा य परोवघाइणी।
से कोह लोह-भय (हास) माणवो, ण हासमाणो वि गिरं वइज्जा ।।54।। हिन्दी पद्यानुवाद
पापानुमोदिनी निश्चय की, पर घातक जो वाणी जग में। क्रोध लोभ भय हास युक्त, नर ना बोले हँसकर भव में।।