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[दशवैकालिक सूत्र भावार्थ-वैसे ही किसी मनुष्य, गौ-महिषादि पशु, पक्षी, अथवा सर्प नोलिया, मच्छ आदि को देखकर यह मोटा है, खूब चर्बी वाला है, मारने योग्य है, पकाने योग्य है इस प्रकार की हिंसा जनक सावध भाषा संयमी मुनि कभी नहीं बोले । आवश्यकता से कुछ कहना पड़े तो इस प्रकार बोले
परिवुड्ढे त्ति णं बूया, बूया उवचिय त्ति य।
संजाए पीणिए वा वि, महाकाय त्ति आलवे ।।23।। हिन्दी पद्यानुवाद
सामर्थ्यवान् उनको बोले, अथवा परिपुष्ट अंगवाला।
या मुदित अभूतपूर्व कोई, अतिशय विशाल काया वाला।। अन्वयार्थ-परिवुड्ढे णं = बढ़ा हुआ शक्ति सम्पन्न है। त्ति बूया = ऐसा बोले । य = और । उवचिय (उवचिए) = भरे हुए शरीर वाला है। त्ति बूया = ऐसा बोले । संजाए = सब अंगों से परिपूर्ण । पीणिए = पुष्ट । वा वि = अथवा । महाकाय (महाकाए) = विशालकाय है। त्ति = इस प्रकार । आलवे = बोले।
भावार्थ-यह शक्ति सम्पन्न है, भरे पूरे शरीर वाला है, परिपूर्ण अंग-उपांग वाला है, परिपुष्ट और विशालकाय वाला है, ऐसे निर्दोष, निर्वद्य और शोभनीय शब्दों से बोले । सावध वचनों का प्रयोग नहीं करे।
तहेव गाओ दुज्झाओ, दम्मा गोरहगत्ति य ।
वाहिमा रहजोगि त्ति, णेवं भासिज्ज पण्णवं ।।24।। हिन्दी पद्यानुवाद
है दोहन के योग्य गाय, बछड़े निग्रह के योग्य सभी।
हल और शकट लायक देखो, ना प्राज्ञ श्रमण यह कहे कभी।। अन्वयार्थ-तहेव = उसी प्रकार । गाओ = गायें । दुज्झाओ = दुहने योग्य हैं। त्ति य = ऐसा और । गोरहग = बछड़े। दम्मा = दमन करने योग्य हैं अथवा खस्सी करने योग्य हैं । वाहिमा = खेत में हल चलाने योग्य हैं। रहजोगित्ति (रहजोगत्ति) = अथवा रथ में जोतने योग्य हैं। पण्णवं = बुद्धिमान् साधु । एवं = इस प्रकार । ण भासिज्ज (भासेज्ज) = सावध वचन कभी नहीं बोले।
भावार्थ-जो वचन आरम्भवर्द्धक या किसी को पीड़ाकारक हो, वैसे वचन साधु नहीं बोले, जैसे-ये गाय, भैंस आदि दुहने योग्य हैं, बछड़े दमन करने योग्य हैं, हल में जोतने योग्य हैं और रथ में जोतने योग्य हैं। ऐसी भाषा बुद्धिमान् साधु कभी नहीं बोले ।