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[दशवैकालिक सूत्र अन्वयार्थ-पासाय खंभाणं = भवन के खम्भों के लिये । तोरणाणं = तोरण द्वार आदि के लिये । य = और । गिहाणं = घर के लिये । अलं = अच्छे पर्याप्त होंगे। फलिहग्गलनावाणं = नगर द्वार की परिघा, आगल और नौका के लिये तथा । उदगदोणिणं = जल कुण्डी के लिये। अलं = अच्छे हैं।
भावार्थ-वन में अच्छे-अच्छे वृक्षों को देखकर संयमी ऐसा नहीं बोले कि ये वृक्ष अच्छे हैं। इनकी लकड़ी भवन के खम्भों के लिये, तोरण और घर की छत के लिये तथा नगर द्वार की परिघा, आगल, नौका और जलकुंडी के लिये अच्छी है, ऐसी सावध भाषा नहीं बोले।
पीढए चंगबेरे य, नंगले मइयं सिया।
जंतलट्ठी व नाभी वा, गंडिया व अलं सिया।।28।। हिन्दी पद्यानुवाद
ये पीढ़ पायली हल चौकी, के लगते हैं निर्माण योग्य ।
कोल्हू पहिए के मध्य भाग, अथवा सुनार-उपकरण योग्य ।। अन्वयार्थ-पीढए = पीढ-बाजोट । चंगबेरे = चंगेरी-काष्ठपात्री । य = और । नंगले = नंगल हल्की मूठ । मइयं सिया = तथा खेत को सम करने के लिये फेरा जाने वाला काष्ठ । जंतलट्ठी (जंतंलट्ठी) = घाणी की लाट । व = और । नाभी = चाक की नाभि । वा = अथवा । गंडिया = गंडिका-एरन के लिये । व अलं सिया = अच्छा होगा।
भावार्थ-अच्छे वृक्षों को देखकर यह कहना कि यह काष्ठ पीठ-बाजोट, चंगेरी, नंगल (हल की मूठ) या खेत में घुमाने के बड़े काष्ठ के लिये, कोल्हू की लाट, चक्र की नाभि अथवा एरन के लिये ठीक है, साधु के लिये निषिद्ध है। क्योंकि यह सावध भाषा है।
आसणं सयणं जाणं, होज्जा वा किंचुवस्सए।
भूओवघाइणिं भासं, णेवं भासिज्ज पण्णवं ।।29।। हिन्दी पद्यानुवाद
इससे शयन यान आसन, या साध उपाश्रय बने सभी।
ना ऐसी प्राणहरी भाषा, मुनि प्राज्ञ किसी से कहे कभी।। अन्वयार्थ-आसणं वा = फिर पाट आदि आसन । सयणं = सोने के लिये बड़ा पाट । जाणं = यान पालकी आदि । उवस्सए = उपाश्रय के लिये । किंच = कुछ। होज्जा (हुज्जा) = उपयोगी होगा। एवं भूओवघाइणिं = इस प्रकार हिंसा वर्द्धक । भासं = भाषा । पण्णवं = बुद्धिमान् साधु । ण भासिज्ज = नहीं बोले।