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[दशवैकालिक सूत्र मणेणं, वायाए, काएणं न करेमि, न कारवेमि, करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि।
छठे भंते ! वए उवट्ठिओमि सव्वाओ राइभोयणाओ वेरमणं ।।16।। हिन्दी पद्यानुवाद
रजनी भोजन त्याग रूप, व्रत छट्टे को अपनाता हूँ। हे पज्य ! रात्रि के भोजन को, अब मन से दर हटाता हूँ।। अशन पान खादिम या स्वादिम, स्वयं नहीं मैं खाऊँगा।
और खिलाऊँगा न किसी को, खाते को भला न मानूंगा।। त्रिकरण त्रियोग से आजीवन, मन वचन तथा अपने तन से। करूँ न करवाऊँ निशि भोजन, भला नहीं जाने मन से ।। करता भदन्त ! निशि अशन त्याग, निन्दा गर्दा भी करता हूँ।
त्याग रात्रि भोजन, व्रत पालन में मन अर्पित करता हूँ ।। अन्वयार्थ-अहावरे छटे भंते ! वए = इसके बाद हे भगवन्! छठे व्रत में । राइ भोयणाओ वेरमणं = रात्रि भोजन का वर्जन किया जाता है। सव्वं भंते! राइभोयणं पच्चक्खामि = हे भगवन् ! मैं सर्वथा रात्रि भोजन का त्याग करता हूँ। से असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा = वह भोजन, अशन, पान, खादिम या स्वादिम वस्तु के रूप में है।
नेव सयं राई भुंजिज्जा.............अन्नं न समणुजाणामि ।
मैं स्वयं रात में खाऊँगा नहीं, दूसरों को रात में भोजन कराऊँगा नहीं। रात में खाने वाले दूसरों का अनुमोदन करूँगा नहीं। जीवन पर्यन्त तीन करण और तीन योग से, मन, वचन और काया से रात्रि में भोजन करूँगा नहीं, दूसरों से रात्रि भोजन कराऊँगा नहीं, रात्रि भोजन करने वाले अन्य को भला मानूँगा नहीं। तस्स भंते!......
..........वोसिरामि। हे भगवन् ! भूतकाल में किये गये उस पाप का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ, दूषित आत्मा का व्युत्सर्ग (अलग) करता हूँ।
......................वेरमणं । हे भगवन् ! इस प्रकार मैं छठे व्रत में उपस्थित हूँ। रात्रि भोजन से मैं सर्वथा निवृत्ति करता हूँ।
भावार्थ-पाँच महाव्रतों के बाद छठे व्रत में रात्रि भोजन की विरति होती है । भन्ते ! मैं सब प्रकार से रात्रि भोजन का प्रत्याख्यान करता हूँ। अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य किसी भी वस्तु का मैं स्वयं रात्रि में उपयोग नहीं करूँगा, दूसरों को भी नहीं खिलाऊँगा और रात्रि में खाने वाले का अनुमोदन भी नहीं करूंगा।
छट्टे भंते!