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पाँचवाँ अध्ययन] हिन्दी पद्यानुवाद
सरल बुद्धि अव्याकुल, मुनि शान्त हृदय धारण करके।
कर आत्मालोचन गुरु समीप, जो ग्रहण किये जैसे जिनके।। अन्वयार्थ-उज्जुप्पण्णो = सरल मन वाला । अणुव्विग्गो = उद्वेगरहित साधु । अवक्खित्तेण = विक्षेप-चंचलता रहित । चेयसा = चित्त से । गुरुसगासे = गुरु की सेवा में । जं जहा = जो जिस प्रकार । गहियं = ग्रहण किया। भवे = हो । आलोए = उसी प्रकार यथार्थ आलोचना करे।
भावार्थ-मन में कोई छिपाने का विचार नहीं लावे, सरल मन से चंचलता रहित होकर, जो जिस प्रकार लिया हो गुरु के समक्ष साफ-साफ कहकर आलोचना करे।
ण सम्ममालोइयं हुज्जा, पुव्विं पच्छा व जं कडं।
पुणो पडिक्कमे तस्स, वोसट्ठो चिंतए इमं ।।91।। हिन्दी पद्यानुवाद
सम्यक् हुई नहीं आलोचना, आगे पीछे कृत-दोषों की।
फिर प्रतिक्रमण कर ले उनका, संस्मृति करके इस गाथा की।। अन्वयार्थ-जं आलोइयं = जो आलोचना । सम्मं = सम्यक् प्रकार से। ण हुज्जा = नहीं की हो । व = अथवा । पुव्विंपच्छा = आगे पीछे । कडं = कहा हो । तस्स = उसके लिये । पुणो = फिर । पडिक्कमे = प्रतिक्रमण करे । वोसट्ठो = और कायोत्सर्ग करके । इमं = इस प्रकार । चिंतए = चिन्तन करे।
भावार्थ-कोई दोष रह न जाय इस भावना से साधु ने जिस दोष की सम्यक् आलोचना नहीं की हो अथवा जो आगे-पीछे कहा गया हो, उसके लिये साधु फिर प्रतिक्रमण करे और कायोत्सर्ग करके इस प्रकार चिन्तन करे।
अहो जिणेहिं असावज्जा, वित्ती साहूण देसिया।
मोक्खसाहणहे उस्स, साहुदेहस्स धारणा ।।92।। हिन्दी पद्यानुवाद
अहो ! जिनेश्वर के द्वारा, मोक्षार्थ साधु तन धारण को।
है दिया गया उपदेश दोष से, रहित धर्म के पालन को ।। अन्वयार्थ-अहो = अहो । जिणेहिं = जिनेश्वर देव ने । मोक्ख-साहणहेउस्स = मोक्ष साधन