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[दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद
देवानुप्रिय ! सुनलो मुझसे, उन धर्मेच्छुक निर्ग्रन्थों का।।
महाभीम आचार कहा जो, भैक्ष्य कठिन कायर मन का ।। अन्वयार्थ-हंदि = अय जिज्ञासुओं! धम्मत्थकामाणं = धर्मार्थ कामी। निग्गंथाणं = निर्ग्रन्थों का । सयलं = सम्पूर्ण । आयारगोयरं = आचार गोचर जो । भीमं = कठोर है और । दुरहिट्ठियं = कायर जनों के लिये जो दुःशक्य है । मे = वह मेरे से । सुणेह = श्रवण करो।
भावार्थ-आचार्य कहते हैं कि हे जिज्ञासुओं! धर्माभिलाषी निर्ग्रन्थों का सम्पूर्ण आचार जो कठोर है एवं साधारण जनों के लिये अत्यन्त कठिन है, इसका संक्षिप्त वर्णन कैसा है, वह मुझ से सुनो।
णण्णत्थ एरिसं वुत्तं, जं लोए परमदुच्चरं ।
विउलट्ठाणभाइस्स, ण भूयं ण भविस्सइ ।।5।। हिन्दी पद्यानुवाद
ऐसा न कहा अन्यत्र कहीं, पालन जिसका है अति दुष्कर।
होगा न हुआ मोक्षार्थी का,आचार उच्च इससे बढ़कर ।। अन्वयार्थ-एरिसं = इस प्रकार का । परमदुच्चरं = परम दुष्कर आचार । णण्णत्थ = अन्यत्रअन्यमतों में कहीं। ण = नहीं। वुत्तं = कहा गया है। जं = जो । विउलट्ठाणभाइस्स = विपुल स्थानमोक्षगामी पुरुषों के लिये । लोए = लोक में अन्यत्र । ण भूयं = हुआ नहीं। ण भविस्सइ = और होगा भी नहीं।
भावार्थ-निर्ग्रन्थों का ऐसा मार्ग लोक में अन्यत्र कहीं नहीं कहा गया है। विपुल मोक्षरूप अर्थ के भागी सुसाधुओं का मार्ग ऐसा हुआ नहीं और होगा नहीं।
स खुड्डगवियत्ताणं, वाहियाणं च जे गुणा।
अखंड फुडिया कायव्वा, तं सुणेह जहा तहा ।।6।। हिन्दी पद्यानुवाद
हो बालक वृद्ध तथा रोगी, सबके हित जो गुण होते हैं।
वे अखंड पालन करते हैं, है जैसे उनको कहते हैं ।। अन्वयार्थ-स खुड्डगवियत्ताणं = बालक, वृद्ध । च = और । वाहियाणं = रोग ग्रस्तों के लिये। जे गुणा = जो गुण (आचार) का। अखंड फुडिया = अखण्ड और स्पष्ट रूप से । कायव्वा = पालन करने योग्य है। तं जहा = उसका स्वरूप जैसा है। तहा = वैसा । सुणेह = श्रवण करो।