________________
छठा अध्ययन
[175 सओवसंता अममा अकिंचणा, सविज्जविज्जाणुगया जसंसिणो। उउप्पसण्णे विमले व चंदिमा, सिद्धिं विमाणाई उर्वति' ताइणो।।69।।
त्ति बेमि। हिन्दी पद्यानुवाद
उपशान्त परिग्रह मोह रहित, आत्मज्ञ ज्ञान युक्त यशकामी।
स्वच्छ शरद् के विमल चन्द्रवत्, जाते विमान शिवपद स्वामी ।। अन्वयार्थ-अठारह प्रकार के आचार की साधना करने वाले । सओवसंता = सदा उपशान्त । अममा = ममता रहित । अकिंचणा = और अपरिग्रही। सविज्जविज्जाणुगया = आत्म-विद्या के ज्ञान का अनुगमन करने वाले । जसंसिणो = यशस्वी पुरुष । उउप्पसण्णे = शरद्काल की निर्मल स्वच्छ ऋतु में । विमले व = विमल तथा । चंदिमा = चन्द्र की तरह । ताइणो = षट्काय के रक्षक मुनि । सिद्धिं = सिद्ध गति । विमाणाई = या वैमानिक देव के पद को । उवेंति = प्राप्त करते हैं। त्ति बेमि = ऐसा मैं कहता हूँ।
भावार्थ-पूर्व कथित 18 आचार-धर्मों की निर्दोष आराधना करने वाले वे सदा उपशान्त, ममत्वरहित और अपरिग्रही मुनि, आत्म-विद्या के ज्ञान पर चलने वाले, षट्काय के रक्षक यशस्वी पुरुष, कर्म मल को दूर कर शरद्काल की निर्मल (स्वच्छ) ऋतु में विमल चन्द्र के समान सिद्धि पद को या वैमानिक देव के भव को प्राप्त करते हैं-ऐसा मैं कहता हूँ।
1. उविंत - पाठान्तर।
।। छठा अध्ययन समाप्त ।। 3888888888888880