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छठा अध्ययन] हिन्दी पद्यानुवाद
सभी जीव जीना चाहते, कोई भी मरण नहीं चाहता।
इसलिये जीव-वध है दारुण, निर्ग्रन्थ सदा वर्जन करता ।। अन्वयार्थ-सव्वे = सब त्रस और स्थावर । वि = भी। जीवा = जीव । जीविउं = जीना। इच्छंति = चाहते हैं । मरिज्जिङ = मरना । ण = नहीं चाहते । तम्हा = इसलिये । पाणिवह = प्राणी वध रूप हिंसा को । घोरं = भयंकर जानकर । णिग्गंथा = निर्ग्रन्थ साधु । वज्जयंति णं = वर्जन करते हैं।
भावार्थ-संसार के त्रस और स्थावर सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता । इन्द्रासन का इन्द्र और मल में रहने वाला कीड़ा दोनों को भी अपना-अपना जीवन प्रिय है, इसलिये प्राणिवध को भयंकर जानकर निर्ग्रन्थ साधु इसका सर्वदा वर्जन करते हैं।
अप्पणट्ठा परट्ठा वा, कोहा वा जइ वा भया।
हिंसगं ण मुसं बूया, णो वि अण्णं वयावए ।।12।। हिन्दी पद्यानुवाद
अपने या परजन के हित में, भय तथा क्रोध के कारण से।
ना बोले हिंसक झूठ कभी, ना ही बुलवाये परजन से ।। अन्वयार्थ-अप्पणट्ठा = अपने लिये । वा = या। परट्ठा = दूसरे परिजन के लिये । कोहा = क्रोध से । वा = अथवा । जइ वा भया = अथवा भय से भी। हिंसगं = हिंसाजनक पीड़ाकारी। ण = न । मुसं बूया = झूठ बोले । अण्णं = दूसरे से झूठ । वयावए वि = बोलावे भी। णो = नहीं।
भावार्थ-दूसरे व्रत में निर्ग्रन्थ साधु अपने प्रयोजन से या किसी दूसरे के लिये क्रोध से अथवा भय एवं लोभादि के कारण से परपीड़ाकारी, मृषावचन स्वयं बोले नहीं एवं दूसरे से बोलावे भी नहीं।
मुसावाओ य लोगम्मि, सव्वसाहूहिं गरिहिओ।
अविस्सासो य भूयाणं, तम्हा मोसं विवज्जए ।।13।। हिन्दी पद्यानुवाद
है सभी साधुओं के द्वारा, मिथ्या भाषण जग में निन्दित ।
झूठे पर सबका अविश्वास, अतएव झूठ कर दे वर्जित ।। अन्वयार्थ-लोगम्मि य = और संसार में। सव्वसाहूहि = सब साधुओं ने । मुसावाओ = मषावाद को । गरिहिओ = गर्हित-निन्दित माना है। य = और । भूयाणं = जन समूह में । अविस्सासो = अविश्वास का कारण है। तम्हा = इसलिये । मोसं = मृषावाद का । विवज्जाए = वर्जन करना उचित है।