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छठा अध्ययन]
[145 भावार्थ-किसी समय नगर के बहिरस्थ उद्यान में ज्ञान दर्शन से युक्त, संयम और तपस्या में रमण करने वाले आगमों के ज्ञाता आचार्य का पदार्पण हुआ। नये साधुओं को देखकर नागरिकों में जिज्ञासा होनी सहज है। इस जिज्ञासा से प्रेरित होकर नगर के प्रमुख, आचार्य से पूछते हैं
रायाणो रायमच्चा य, माहणा अदुव खत्तिया।
पुच्छंति णिहु अप्पाणो, कहं भे आयारगोयरो ?।।2।। हिन्दी पद्यानुवाद
राजा राजमन्त्री ब्राह्मण, क्षत्रिय सब शुद्ध हृदय वाले।
आकर पूछे सविनय गणी से,आचार संत कैसा पाले? ।। अन्वयार्थ-रायाणो = राजा। रायमच्चा = राजमन्त्री । य = और । माहणा = ब्राह्मण । अदुव = अथवा । खत्तिया = क्षत्रियों ने । णिहुअप्पाणो = स्थिरमन और भक्तिपूर्वक आचार्य देव से । पुच्छंति = पूछा कि । भे = हे भगवन् ! आपका । आयारगोयरो = आचार-गोचर । कहं = किस प्रकार का है ?
भावार्थ-विधि से अनभिज्ञ नगरी के राजा, राजमन्त्री, ब्राह्मण एवं क्षत्रिय आदि स्थिर मन और विनय से पूछने लगे-“महाराज ! आपका आचार धर्म कैसा है ?"
तेसिं सो णिहुओ दंतो, सव्वभूयसुहावहो ।
सिक्खाए सुसमाउत्तो, आयक्खइ वियक्खणो ।।3।। हिन्दी पद्यानुवाद
निश्चल मन दमितेन्द्रिय वे, सुखदायक सारे जीवों के।
शिक्षा में सम्पन्न विचक्षण, बोले उत्तर उन प्रश्नों के ।। अन्वयार्थ-तेसिं सो = उन राजा आदि को। णिहुओ = स्थिर चित्त । दंतो = जितेन्द्रिय । सव्वभूयसुहावहो = सब प्राणियों के सुखैषी । सिक्खाए = आसेवना और ग्रहण शिक्षा से । सुसमाउत्तो = युक्त वह । वियक्खणो = विचक्षण आचार्य । आयक्खइ = अपना आचार धर्म बतलाते हैं।
भावार्थ-स्थिरचित्त, जितेन्द्रिय और सब जीवों के हितकारी, शिक्षा सम्पन्न वे विचक्षण आचार्य उन राजा एवं मन्त्रियों को अपना आचार बताते हुए कहने लगे।
हंदि धम्मत्थकामाणं, निग्गंथाणं सुणेह मे। आयारगोयरं भीम, सयलं दुरहिट्ठियं ।।4।।