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[दशवैकालिक सूत्र
अन्वयार्थ-तं = वह । भत्तपाणं तु = आहार- पानी । संजयाण = साधुओं के लिए । अकप्पियं = अग्राह्य । भवे = होता है, अत: । दिंतियं = देने वाली से। पडियाइक्खे = निषेध से कहे कि । मे मुझको । तारिसं = वैसा आहार लेना । ण कप्पड़ = नहीं कल्पता है।
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भावार्थ-ऐसा आहार -पानी साधुओं के लिए अग्राह्य होता है। अतः देने वाली से साधु निषेध की भाषा में कहे कि मुझको वैसा आहार लेना नहीं कल्पता है ।
हिन्दी पद्यानुवाद
उप्पलं पउमं वा वि, कुमुयं वा मगदंतियं । अण्णं वा पुप्फ-सच्चित्तं, तं च संमद्दिया दए ।।16।।
उत्पल पद्म कुमुद अथवा, मालती लता के फूलों का । हो अन्य सचित्त जो ऐसे ही, मर्दन कर वैसे फूलों का ।।
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अन्वयार्थ - उप्पलं = उत्पल कमल । वा वि = अथवा । पउमं पद्म कमल । वा = अथवा । कुमुयं = चन्द्र विकासी कमल और । मगदंतियं = मालती के फूल । वा = अथवा वैसे । अण्णं = अन्य कोई । पुप्फसच्चित्तं = सचित्त फूल हो । तं च = और उसको । संमद्दिया = मसलकर । दए = साधु को भिक्षा दे ।
हिन्दी पद्यानुवाद
भावार्थ-पहले की तरह कोई कमल आदि फूलों को मर्दन कर साधु को भिक्षा दे।
तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दिंतियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पड़ तारिसं ।।17।।
दे दाता यदि भक्त पान तो, वह अकल्प्य हो जाता है। भिक्षा दात्री को मुनि बोले, वैसा मुझे नहीं कल्पता है ।
अन्वयार्थ-तं = वह । भत्तपाणं तु = आहार- पानी । संजयाण = साधुओं के लिये । अकप्पियं = अग्राह्य । भवे = हो जाता है अत: । दिंतियं = देने वाली से। पडियाइक्खे = कहे कि । मे = मुझको । तारिसं = वैसा आहार लेना । ण कप्पड़ = नहीं कल्पता ।
भावार्थ-उस प्रकार का आहार -पानी साधुओं के लिये अग्राह्य होता है अत: देने वाली से साधु निषेध की भाषा में कहे कि मुझको वैसा आहार -पानी लेना नहीं कल्पता है ।
सालुयं वा विरालियं, कुमुयं उप्पलणालियं । मुणालयं सासवणालियं, इच्छुखंडं अणिव्वुडं ॥18॥