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पाँचवाँ अध्ययन हिन्दी पद्यानुवाद
कैथ बिजौरा मूला या, टुकड़ा मूले के कन्दों का।
हो कच्चा शस्त्र-प्रयोग हीन, मुनि करे न ध्यान कभी उनका।। अन्वयार्थ-कविटुं च = कपित्थ-कैथ और । माउलिंग = बिजौरा । मूलगं = मूला । मूलगत्तियं = मूले के टुकड़े। आम = कच्चे । असत्थपरिणयं = अशस्त्र परिणत । मणसा वि = मन से भी। ण पत्थए = नहीं चाहे।
भावार्थ-कैथ, बिजौरा, मूला और मूले के टुकड़े कच्चे एवं शस्त्र परिणत न हुए हों तो उनको ग्रहण करने की साधु मन में इच्छा भी नहीं करे।
तहेव फलमंथूणि, बीयमंथूणि जाणिया।
बिहेलगं पियालं च, आमगं परिवज्जए ।।24।। हिन्दी पद्यानुवाद
वैसे ही बेर फलादि चूर्ण, और बीज-चूर्ण को जान श्रमण ।
हो दाख बहेड़ा फल कच्चा, तो कभी न उनको करे ग्रहण ।। अन्वयार्थ-तहेव = बिजौरा आदि की तरह । फलमंथूणि = बेर आदि फलों का चूर्ण । बीयमंथूणि = बीजों का चूर्ण । जाणिया = जानकर । च = और । बिहेलगं = बहेड़ा। पियालं = तथा प्रियाल (रायण) का फल । आमगं = कच्चा हो तो। परिवज्जए = वर्जन करे ।
भावार्थ-फल और बीज आदि के चूर्ण बहेड़ा आदि कच्चे हों या मिश्र की आशंका हो तो उन्हें छोड़ दे।
समुयाणं चरे भिक्खू, कुलमच्चावयं सया।
णीयं कुलमइक्कम्म, ऊसढं णाभिधारए ।।25।। हिन्दी पद्यानुवाद
सामूहिक भिक्षा हित भिक्षु, ऊँचे नीचे घर में जाये।
नीचे कुल को छोड़, केवल धनियों के घर नहीं जाये ।। अन्वयार्थ-भिक्खू = साधु । सया = सदा । समुयाणं = सामुदायिक भिक्षा हेतु । कुलमुच्चावयं = छोटे बड़े घरों में । चरे = जावे । णीयं = छोटे । कुलं = घर को। अइक्कम्म = छोड़कर । ऊसढं = ऊँचे धनी के घर में । णाभिधारए = जाने की धारणा नहीं करे ।