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[दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद
भिक्षा दोषों की शुद्धि सीख, संयमी ज्ञानी मुनिजन संग में।
दान्त तीव्र लज्जालु गुणी, मुनि विहरे निर्भय हो जग में ।। अन्वयार्थ-बुद्धाण = तत्त्व के ज्ञाता-गीतार्थ । संजयाण = सन्तों के । सगासे = पास । भिक्खेसणसोहिं = भिक्षा की गवेषणा की शुद्ध विधि को। सिक्खिऊण = सीखकर । तिव्वलज्ज = दोष से लजाने वाला । गुणवं = गुणवान् । भिक्खू = साधु । तत्थ = उस एषणा में। सुप्पणिहिइंदिए = जितेन्द्रिय और स्थिरचित्त होकर । विहरिज्जासि = विचरे । त्ति बेमि = ऐसा मैं कहता हूँ।
भावार्थ-सुधर्मा स्वामी कहते हैं- “तत्त्वज्ञ मुनियों के पास भिक्षा में एषणा शुद्धि की शिक्षा लेकर दोषों से बचने वाला गुणवान् साधु आहार आदि की गवेषणा करने में जितेन्द्रिय और स्थिर चित्त होकर विचरे।"
त्ति बेमि = (इति ब्रवीमि) ऐसा मैं कहता हूँ।
।। पाँचवाँ अध्ययन-द्वितीय उद्देशक समाप्त ।।
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