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पाँचवाँ अध्ययन]
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नाइहीलिज्जा = भोजन हो तो भी उसकी हीलना नहीं करे, किन्तु । मुहालद्धं = नि:स्वार्थ भाव से दिये गये । फासुयं = अचित्त आहार आदि का । मुहाजीवी = निर्जराकामी मुनि । दोसवज्जियं = संयोजना आदि के दोष रहित जानकर । भुंजिज्जा = शान्ति से सेवन करे ।
भावार्थ-अल्प मिले या अधिक मिले, लूखा हो या सूखा, उसकी निन्दा नहीं करे। किन्तु बिना स्वार्थ के गवेषणा, संयोजना आदि दोष रहित प्रासुक भोजन को समभाव से सेवन कर ले ।
हिन्दी पद्यानुवाद
दुल्लहा उमुहादाई, मुहाजीवी विदुल्लहा । मुहादाई मुहाजीवी, दो वि गच्छंति सुग्गई । 11001 ।।त्ति बेमि ।।
निष्काम प्रदाता दुर्लभ है, दुर्लभ वैसे लेने वाले । दोनों ही सद्गति में जाते हैं, निष्काम दान जीवन वाले ।। जम्बू ! महावीर से मैंने, जैसा सुना वही कहता । हैं सारी बातें वीर कथित, मैं अपनी बात नहीं कहता ।।
अन्वयार्थ-मुहादाई = नि:स्वार्थ भाव से देने वाला दाता। दुल्लहा उ = दुर्लभ हैं। मुहाजीवी
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बिना किसी अपेक्षा के जीने वाले सन्त । वि = भी। दुल्लहा : दुर्लभ हैं। मुहादाई = नि:स्वार्थ भाव से देने वाला और । मुहाजीवी = निस्पृह जीवन जीने वाला। दो वि = ये दोनों । सुग्गइं = सद्गति को । गच्छंति = प्राप्त करते हैं।
भावार्थ-संसार में बिना स्वार्थ के देने वाले दाता दुर्लभ हैं, वैसे ही बिना स्पृहा के याचक भी दुर्लभ हैं। कामना और इच्छा से दूर मुधादाता और दाता की प्रसन्नता के बिना अपेक्षा से लेने वाले मुधाजीवी भिक्षु दोनों ही सद्गति को प्राप्त करते हैं । उनके देने-लेने में कोई सौदा नहीं होता ।
।। पाँचवाँ अध्ययन-प्रथम उद्देशक समाप्त ।।
SAURSABRUKERER