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[दशवैकालिक सूत्र
द्वितीय उद्देशक पडिग्गहं संलिहित्ताणं, लेवमायाइ-संजए।
दुगंधं वा सुगंधं वा, सव्वं भुंजे ण छड्डए ।।1।। हिन्दी पद्यानुवाद
अंगुलियों से पात्र पोंछ कर, लेप मात्र नहीं रखे समण ।
सुरभिगंध या अशुभगंध हो, कुछ न तजे सब खाले अशन।। अन्वयार्थ-संजए = संयमी साधु । लेवमायाए = लेप मात्र से । पडिग्गहं = पात्र को । संलिहित्ताणं = अंगुली को पोंछकर । दुगंधं = दुर्गंध । वा = अथवा । सुगंधं = सुगन्ध । वा = अथवा । सव्वं = सब । भुंजे = खा ले । ण छड्डए = कुछ भी नहीं छोड़ें।
भावार्थ-साधु खाने के पात्र को अच्छी तरह से पोंछ कर दुर्गन्ध अथवा सुगन्ध सब पदार्थ खा ले, कुछ भी शेष नहीं छोड़े।
सेज्जा निसीहियाए, समावण्णो य गोयरे ।
अयावयट्ठा भुच्चाणं, जइ तेण न संथरे ।।2।। हिन्दी पद्यानुवाद
स्थानक या स्वाध्याय स्थान में, ले आने पर शुद्ध आहार।
प्राप्त अशन खा लेने पर यदि, हो न सके तन का निस्तार।। अन्वयार्थ-सेज्जा = निवास स्थान । निसीहियाए = स्वाध्याय या बैठने के स्थान में । य = और । गोयरे = गोचरी में । समावण्णो = गया हुआ मुनि । अयावयट्ठा = आवश्यकता से कुछ कम । भुच्चाणं (भोच्चाणं) = खाकर । जइ तेण = यदि उस आहार से । न संथरे = नहीं रह सके। टिप्पणी-इसका भावार्थ अगली गाथा में लिखा गया है।
तओ कारणमुप्पण्णे, भत्तपाणं गवेसए।
विहिणा पुव्व-उत्तेण, इमेणं उत्तरेण य ।।3।। हिन्दी पद्यानुवाद
ऐसे कारण के होने पर, मुनि भिक्षार्थ पुनः जाये । पूर्व कथित विधि से अथवा, आगे जैसी विधि बतलाये ।।