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पाँचवाँ अध्ययन
[123 अन्वयार्थ-तओ = तो । कारणमुप्पण्णे = कारण उत्पन्न होने पर । विहिणा पुव्व उत्तेण य = पूर्व कथित विधि से और । इमेणं उत्तरेण = आगे कही जाने वाली विधि से । भत्तपाणं = आहार-पानी की। गवेसए = साधु गवेषणा करे।
भावार्थ-इन दो गाथाओं में यह बतलाया गया है कि साधु अपने उपाश्रय या बैठने के स्थान में तथा गोचरी के क्षेत्र में अपर्याप्त आहार करके उतने भर से नहीं रह सके, क्षुधा आदि विशेष कारण की स्थिति में पहले कही हुई तथा आगे कही जाने वाली विधि से आहार-पानी की फिर गवेषणा करे।
कालेण णिक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे।
अकालं च विवजित्ता, काले कालं समायरे ।।4।। हिन्दी पद्यानुवाद
उचित समय पर भिक्षा को, जायें और आयें मुनिजन ।
छोड़ अकाल काल में सब, करणी करने का हो चिन्तन ।। अन्वयार्थ-भिक्खू = साधु । कालेण = भिक्षा के लिये समय में ही। णिक्खमे = निकले । य = और । कालेण = समय पर ही। पडिक्कमे = लौट आवे । च = और। अकालं = अकाल को। विवज्जित्ता = छोड़कर । काले = जिस समय का जो कार्य हो उसे । कालं = उसी समय में । समायरे = सम्पन्न करे।
भावार्थ-साधु समय पर भिक्षा को निकले और समय पर ही लौट आवे। अकाल का वर्जन कर जिस समय का जो कार्य हो उसे उसी काल में सम्पन्न करना चाहिये।
अकाले चरसि भिक्खू, कालं ण पडिलेहसि।
अप्पाणं च किलामेसि, सण्णिवेसं च गरिहसि ।।5।। हिन्दी पद्यानुवाद
जाते अकाल में भिक्षा को, नहीं ध्यान काल का जो रखते।
पहुँचाते निज को खेद और, वसति की वे निन्दा करते ।। अन्वयार्थ-भिक्खू = हे भिक्षु । अकाले = तुम अकाल में । चरसि = भिक्षा को जाते हो। कालं = भिक्षा के समय का । ण पडिलेहसि = ध्यान नहीं करते हो, इससे । च = और । अप्पाणं = अपने आप को। किलामेसि = खिन्न करते हो । च = और । संणिवेसं = गाँव की। गरिहसि = निन्दा-हीलना करते हो।