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पाँचवाँ अध्ययन
भावार्थ-लाभार्थी मुनि आहार सेवन करने से पहले विश्राम करता हुआ, आत्म-हित के लिये ऐसा चिन्तन करे कि यदि मेरे द्वारा प्राप्त आहार में से सन्त कुछ लेने का अनुग्रह करें तो मैं भवसागर पार हो जाऊँ।
साहवो तो चिअत्तेणं, निमंतिज्ज जहक्कम ।
जइ तत्थ केइ इच्छेज्जा, तेहिं सद्धिं तु भुंजए।।95।। हिन्दी पद्यानुवाद
हर्षित मन मुनि साधुजनों को, क्रम से आमन्त्रण देवे ।
यदि चाहे उनमें जो लेना, तो साथ उन्हीं के खा लेवे ।। अन्वयार्थ-चिअत्तेणं = चिन्तन के पश्चात् । साहवो तो = प्रसन्नता पूर्वक साधुओं को । जहक्कम = छोटे-बड़े क्रम से। निमंतेज्ज (निमंतिज्ज) = निमन्त्रित करे । जड़ = यदि । तत्थ = उन साधुजनों में से। केइ = कोई । इच्छेज्जा (इच्छिज्जा) = खाना लेना चाहे । तु = तो। तेहिं = उनके । सद्धिं = साथ प्रेम पूर्वक । भुंजए = भोजन करे।
भावार्थ-चिन्तन के बाद प्रसन्नतापूर्वक यथाक्रम से सब साधुओं को निमन्त्रित करे। उनमें से कोई मुनि चाहे, तो उनके साथ प्रेम से भोजन करना स्वीकार करे।
अह कोइ ण इच्छेज्जा, तओ भुंजेज्ज एगओ।
आलोए भायणे साहू, जयं अप्परिसाडियं ।।96।। हिन्दी पद्यानुवाद
अगर नहीं चाहे कोई तो, करे अकेला ही भोजन ।
प्रकाश वाले भाजन में, रख ध्यान न गिरे वहाँ भोजन ।। अन्वयार्थ-अह = कदाचित् । कोइ = कोई साधु लेना । ण इच्छेज्जा (इच्छिज्जा) = नहीं चाहे । तओ = तो । साहू = साधु । एगओ = एकाकी । आलोए = प्रकाश वाले । भायणे = पात्र में । जयं = यतना के साथ । अप्परिसाडियं = नीचे नहीं गिराते हुए । भुंजेज्ज (अँजिज्ज) = आहार करे।
भावार्थ-कदाचित् कोई भिक्षु भिन्न रुचि के कारण साथ खाना नहीं चाहे तो साधु प्रकाश वाले पात्र में यतना के साथ नीचे इधर-उधर नहीं गिराते हुए एकाकी भोजन कर ले।
तित्तगं व कडुयं व कसायं, अंबिलं व महुरं लवणं वा। एयलद्धमण्णट्ठपउत्तं, महुघयं व अँजिज्ज संजए।।97।।