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पाँचवाँ अध्ययन]
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का चूर्ण । सक्कुलिं = तिल पपड़ी । फाणिअं = गीला गुड़ । पूअं = पूआ । अन्नं वा वि = अथवा अन्य भी । तहाविहं = इस प्रकार की वस्तुएँ। आवणे = दुकान में रखी हों।
भावार्थ-कन्द आदि की तरह कुछ पदार्थ अचित्त होने पर भी अग्राह्य होते हैं, इसके लिये कहा है कि कहीं दुकान में सत्तू का चूर्ण, बेर का चूर्ण, तिल पपड़ी, पतला गुड़ तथा पूआ आदि वैसे अन्य पदार्थ । विक्कायमाणं पसढं, रएण परिफासियं । दिंतियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पड़ तारिसं ।।72।।
हिन्दी पद्यानुवाद
बिक्री हेतु हाट में फैले, फिर भी रज से स्पृष्ट हुए । भिक्षादात्री को मुनि बोले, ऐसा मुझको नहीं चाहिए ।।
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अन्वयार्थ-विक्कायमाणं = विक्रय के लिये । पसढं = फैला रखी हों। रएण = धूलि कण से । परिफासियं = स्पृष्ट (लिप्त) हों । दिंतियं = ऐसे पदार्थों की भिक्षा देने वाली से मुनि । पडियाइक्खे कहे कि । तारिसं = वैसा आहार । मे = मुझे लेना । ण कप्पड़ = कल्पता नहीं है।
हिन्दी पद्यानुवाद
भावार्थ-जो विक्रय के लिये दुकान में फैला रखे हों, (कई दिन से नहीं बिकने पर) जिन पर हवा से उड़कर आई बारीक रज जमी हो, तो ऐसे पदार्थों को देने वाली से साधु कहे कि वैसा आहार उसको नहीं लेना है।
बहुअट्ठियं पुग्गलं, अणिमिसं वा बहुकंटयं । अत्थियं तिंदुयं बिल्लं, उच्छुखंडं व सिंबलिं । 17311
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सीताफल और अनन्नास, मुनमा तथा पनस का फल । तेन्दू बेल गन्ना खण्डों को, और दूसरे हैं सेमल ।।
अन्वयार्थ - बहुअट्ठियं = बहुत गुठली वाले। पुग्गलं = फल। वा = अथवा । बहुकंटयं = बहुत काँटों वाले फल जैसे पनस, कटहल आदि । अणिमिसं = अनिमिष अर्थात् अन्नानास के फल । अत्थियं = अत्थिय या आक्षिक फल । तिंदुयं = तेन्दू का फल । बिल्लं = बेल फल । उच्छुखंडं व = अथवा | सिंबलिं = सिंबली फल को ।
इक्षु खण्ड
भावार्थ-यहाँ पर बताया गया है कि पके होने पर भी जिनमें फैंकने लायक भाग अधिक हो, वैसे फल साधु नहीं ले। जैसे- बहुत गुठली वाले फल, अथवा बहुत काँटों वाले अनिमिष फल, अस्थिक या