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पाँचवाँ अध्ययन]
[107 निस्सेणिं फलगं पीढं, उस्सवित्ताणमारुहे।
मंचं कीलं च पासायं, समणट्ठाए व दावए।।67।। हिन्दी पद्यानुवाद
भिक्षा दात्री कष्ट उठाकर, सीढ़ी पाटे पीढ़े पर ।
खाट और कीलक को ऊँचा, कर चढ़ जाये कोठे पर ।। अन्वयार्थ-दावए = दाता । समणट्ठाए = साधु के लिये । निस्सेणिं = निश्रेणि सीढ़ी । फलगं = पाट । व = और। पीढं = पीढा-चौकी। मंचं = माचे को। च = और। कीलं = कीलक को। उस्सवित्ताणं = ऊँचा करके । पासायं = कोठे पर । आरुहे = चढ़कर आहार लावे ।
भावार्थ-कभी दाता ऊपर रखी हुई अथवा कील, झूटी, काष्ठ-स्तम्भ या प्रासाद पर रखी हुई वस्तु साधु को देने के लिये, निश्रेणि, पाट, चौकी या खाट पर चढ़ करके लाकर दें।
दुरूहमाणी पवडिज्जा, हत्थं पायं व लूसए।
पुढवीजीवे वि हिंसिज्जा, जे य तन्निस्सिया जगे।।68।। हिन्दी पद्यानुवाद
मुनि भिक्षा हित ऊँचे चढ़ती, यदि वह भू पर गिर जाये। अपने हाथ पैर को निश्चय, इस प्रकार वह तुड़वाये ।। पृथ्वीकायिक जीव तथा, उस आश्रय के वासी सारे।
द्वीन्द्रिय आदिक सूक्ष्म जीव, इस विधि सब जायेंगे मारे ।। अन्वयार्थ-दुरूहमाणी = चढ़ती हुई कदाचित् । पवडिज्जा = गिर जाय तो । हत्थं = हाथ । व = और । पायं = पैर को । लूसए = चोट लगा ले । पुढवी जीवे = नीचे पृथ्वी के जीवों की। वि = भी। हिंसिज्जा = हिंसा करेगी। जे य = और जो । तन्निस्सिया = उस भूमि के आश्रित । जगे= जीव हैं, उनकी भी हिंसा होगी।
भावार्थ-वहाँ चढ़ते-उतरते कदाचित् हाथ-पैर को चोट आ जाये तो खुद की विराधना होगी। गिरने से पृथ्वी के जीवों की और उसके आश्रित रहे अन्य सूक्ष्म जीवों की भी हिंसा हो जायेगी।
एयारिसे महादोसे, जाणिऊण महेसिणो । तम्हा मालोहडं भिक्खं, ण पडिगिण्हंति संजया ।।69।।
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आलोहडं = इति पाठान्तर = 'आले पर से' इत्यर्थः ।