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पाँचवाँ अध्ययन]
[103 अन्वयार्थ-असणं = अशन । पाणगं = पानक । वा = या । खाइमं वि = खाद्य वस्तु मेवा आदि भी। तहा = तथा । साइमं = स्वादिम-लवंग आदि । पुप्फेसु = फूलों से । वा = और । बीएसु = धान्य के बीजों से । हरिएसु = हरे पत्तों से । उम्मीसं = मिश्रित । होज्ज = हो ।
भावार्थ-अशन, पानक आदि किसी भी प्रकार का आहार जो फूलों, धान्य कणों अथवा हरे पत्तों आदि से मिश्रित हो, तो साधु उस आहार को ग्रहण नहीं करे।
तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ।
दितियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पड़ तारिसं ।।58।। हिन्दी पद्यानुवाद
फिर तो वह अशनादि साधुओं, के हित होता ग्राह्य नहीं।
भिक्षा दात्री से मुनि बोले, मुझको यह है कल्प्य नहीं।। अन्वयार्थ-तं = वह । भत्तपाणं तु = आहार-पानी तो । संजयाण = साधुओं के लिये । अकप्पियं = अग्राह्य । भवे = होता है, अतः । दितियं = देने वाली से । पडियाइक्खे = निषेध करते हुए कहे कि । मे = मुझे । तारिसं = वैसा आहार । ण कप्पड़ = नहीं कल्पता है।
भावार्थ-वह आहार-पानी साधुओं के लिये अग्राह्य होता है, अत: देने वाली से निषेध की भाषा में साधु कहे कि वैसा आहार उसे लेना नहीं कल्पता है।
असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा।
उदगम्मि होज्ज निक्खित्तं, उत्तिंगपणगेसु वा ।।59।। हिन्दी पद्यानुवाद
अशन पान खादिम या स्वादिम, जल सचित्त पर हो रक्षित।
कीटवास लीलन फूलन पर, होवे तो मुनि को वर्जित ।। अन्वयार्थ-असणं = अशन । पाणगं = पानक । वा = या। खाइमं = खाद्य । तहा = तथा । साइमं = स्वादिम के पदार्थ । उदगम्मि = सचित्त जल पर । वा = अथवा । उत्तिंगपणगेसु = चींटियों के बिल तथा फूलन पर । निक्खित्तं = रखा हो।
भावार्थ-अशन-पानक या खाद्य तथा स्वादिम लवंग आदि पदार्थ सचित्त जल पर अथवा चींटियों के बिल तथा लीलन-फूलन पर रखा हो.....।