________________
102]
[दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद
औद्देशिक या क्रीत पूति, पर घर से सम्मुख जो लाया।
अधिक बना या उधार लाया, मिश्रित नहीं ले मुनिराया ।। अन्वयार्थ-उद्देसियं = साधु के लिये बनाया गया आहारादि । कीयगडं = खरीद कर लाया हुआ। पूड़कम्मं च = और निर्दोष आहार में आधाकर्म का मिश्रण हो । आहडं = गाँव आदि से सामने लाया हुआ हो । अज्झोयर = साधु के लिये अधिक डालकर बनाया हो । पामिच्चं = उधार लिया हुआ आहारादि । मीसजायं = गृहस्थ और साधु के लिये सम्मिलित बना हो । विवज्जए = वैसे आहार आदि का वर्जन करें।
भावार्थ-जो आहार साधु को उद्देश्य करके बनाया हो, साधु के लिये खरीद कर लाया गया हो, निर्दोष आहार में आधाकर्म का अंश मिला हो, पराये घर व गाँव से सामने लाया हो, साधु के लिये अधिक वस्तु डालकर बनाया हो, उधार लाकर दिया जाता हो, साधु और गृहस्थ के लिये सम्मिलित बनाया हो, वैसा आहार आदि का मुनि वर्जन करे । अर्थात् वैसा आहार नहीं ले।
उग्गमं से अपुच्छिज्जा, कस्सट्ठा केण वा कडं।
सुच्चा निस्संकियं सुद्धं, पडिगाहिज्ज संजए।।56।। हिन्दी पद्यानुवाद
अशन आदि का उद्गम पूछे, किसके लिये किया किसने।
सुनकर शुद्ध तथा नि:शंकित, मुनि ले इच्छित चाहे जितने ।। अन्वयार्थ-से अ = आहार की निर्दोषता को जानने के लिये उसके। उग्गमं = उत्पत्ति के विषय में। पुच्छिज्जा = पूछे । कस्सट्ठा = किसके लिये बनाया । वा = या । केण = किसने । कडं = बनाया। सुच्चा = गृहस्थ से सुनकर । निस्संकियं = जो शंका रहित । सुद्धं = शुद्ध ज्ञात हो उसको । संजए = साधु । पडिगाहिज्ज = ग्रहण करे।
भावार्थ-आहार की निर्दोषता जानने के लिये उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में पूछे, यह किसके लिये किसने और क्यों बनाया है ? सुनने के पश्चात् जो आहार शंका रहित शुद्ध ज्ञात हो, उसको साधु ग्रहण करे।
असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा।
पुप्फेसु होज्ज उम्मीसं, बीएसु हरिएसु वा ।।57।। हिन्दी पद्यानुवाद
अशन पान खादिम स्वादिम, जो पुष्पों से हों मिले हुए। अथवा सचित्त बीज संयुत, या हरित काय से जुड़े हुए।।