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[दशवैकालिक सूत्र तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ।
दितियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पड़ तारिसं ।।60।। हिन्दी पद्यानुवाद
वह अशनादि साधु हित में, हो सकता है ग्राह्य नहीं।
बोले मुनि भिक्षा-दात्री को, है मुझको ऐसा कल्प्य नहीं।। अन्वयार्थ-तं = वह । भत्तपाणं तु = आहार-पानी । संजयाण = साधुओं के लिये । अकप्पियं = अग्राह्य । भवे = होता है, अतः । दितियं = देने वाली से । पडियाइक्खे = निषेध से कहे कि । मे = मुझको । तारिसं = वैसा आहार लेना । ण कप्पइ = नहीं कल्पता है।
भावार्थ-वह आहार-पानी साधुओं के लिये अग्राह्य होता है। इसलिए साधु देने वाली से कहे कि वैसा आहार उसको लेना नहीं कल्पता है।
असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा।
तेउम्मि होज्ज निक्खित्तं, तं च संघट्टिया दए ।।61।। हिन्दी पद्यानुवाद
अशन पान खादिम या स्वादिम, तेजस्काय पर हो रक्षित।
अथवा छूकर अग्निकाय को, भिक्षा देना है वर्जित ।। अन्वयार्थ-असणं = अशन । पाणगं = पानक । वा = अथवा । खाइमं वि = खाद्य भी। तहा = तथा । साइमं = स्वादिम जो । तेउम्मि = अग्नि पर । निक्खित्तं = रक्खे । होज्ज = हो । च = अथवा । तं = उस अग्नि का । संघट्टिया = संघट्टा करके । दए = देवे । तो..........
__ भावार्थ-अशन, पानक अथवा खाद्य तथा स्वादिम जो अग्नि पर रखे हों, और उस अग्नि का संघट्टा करके देवे.........।
तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ।
दितियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पइ तारिसं ।।62।। हिन्दी पद्यानुवाद
वह अशनादि साधु के हित में, रह जाता है ग्राह्य नहीं।
बोले मुनि भिक्षा-दात्री से, है मुझको ऐसा कल्प्य नहीं।। अन्वयार्थ-तं = वह । भत्तपाणं तु = आहार-पानी तो । संजयाण = साधुओं के लिये। अकप्पियं