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पाँचवाँ अध्ययन]
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अन्वयार्थ-असंसत्तं = गृहस्थ के घर में, आसक्ति रहित । पलोइज्जा = देखे । णाइ दूरावलोयए = अधिक दूर दृष्टि नहीं फैलावे । उप्फुल्लं = उत्सुकतापूर्ण दृष्टि से । ण विणिज्झाए = नहीं देखे, किन्तु । अयंपिरो = बिना कुछ बोले । णिअट्टिज्ज = घर से निकल आवे ।
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भावार्थ-मुनि गृहस्थ के घर में जाकर गृहस्थ की वस्तुओं को नजर गडाकर नहीं देखे । अति दूर भी नहीं देखे जिससे कि गृहपति को शंका उत्पन्न हो । घर में कोई मनोहर वस्तु नजर आए तो उसे टकटकी लगाकर नहीं देखे । कदाचित् भिक्षा-लाभ न भी हो तो बिना बोले लौट जावे ।
हिन्दी पद्यानुवाद
अइभूमिं ण गच्छेज्जा, गोयरग्गगओ मुणी । कुलस्स भूमिं जाणित्ता, मियं भूमिं परक्कमे ।। 24।।
सीमा से आगे बढ़े नहीं, भिक्षार्थ गया हो जहाँ श्रमण । घर की मर्यादा भूमि जान, उस सीमा तक ही करे गमन ।।
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अन्वयार्थ-गोयरग्गगओ = गोचरी के लिये गया हुआ । मुणी मुनि । अइभूमिं = गृहस्थ यहाँ मर्यादित भूमि से आगे। ण (न) गच्छेज्जा = नहीं जावे। कुलस्स = कुल की । भूमिं = भूमि सम्बन्धी मर्यादा को । जाणित्ता = जानकर । मियं भूमिं = परिमित भूमि में । परक्कमे = गमन करे |
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हिन्दी पद्यानुवाद
भावार्थ-आहार-पानी के लिये गृहस्थ के घर में गया हुआ साधु मर्यादित भूमि से आगे नहीं जावे । घर की मर्यादित भूमि को जानकर, उतने ही मर्यादित क्षेत्र में गमन करे, जिससे कि गृहपति को किसी प्रकार की अप्रीति उत्पन्न नहीं हो ।
तत्थेव पडिलेहिज्जा, भूमिभागं वियक्खणो । सिणाणस्स य वच्चस्स, संलोगं परिवज्जए ।125 ।।
जिस भूमि भाग पर खड़ा श्रमण, प्रतिलेखन मात्र करे उसका । देखे न भूलकर भी वह मुख, स्नान मूत्र शौचालय का ।।
अन्वयार्थ-तत्थेव = वहाँ गृहस्थ के घर में । वियक्खणो = विचक्षण मुनि । भूमिभागं = उस मर्यादित भूमि को । पडिलेहिज्जा = प्रतिलेखन करे । सिणाणस्स = स्नान घर । य = और | वच्चस्स = शौच घर की ओर । संलोगं = नजर से देखना । परिवज्जए = वर्जन करे ।
भावार्थ-विचक्षण मुनि घर की मर्यादित भूमि को अच्छी तरह देखकर खड़ा रहे, किन्तु घर में स्नान