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अन्वयार्थ-दारगं = बालक । वा = अथवा । कुमारियं = बालिका को । थणगं = स्तन । पिज्जमाणी = पान कराती ई दात्री । तं = उसको । निक्खिवित्तु रोयंतं = रोते छोड़कर | पाण भोयणं = आहार-पानी । आहरे = लाकर देवे
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पाँचवाँ अध्ययन]
भावार्थ-पुत्र-पुत्रियों को दुग्ध पान कराती हुई यदि कोई दात्री उनको रोते छोड़कर साधु-साध्वी को आहार लाकर देवे तो..
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हिन्दी पद्यानुवाद
तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दिंतियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पड़ तारिसं । 1431
वह अशन-पान मुनि के हित में, होता है निश्चय ग्राह्य नहीं । मुनि बोले भिक्षादात्री से, मुझको यह भोजन कल्प्य नहीं ।।
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अन्वयार्थ-तं = वह । भत्तपाणं तु = आहार- पानी। संजयाण = साधुओं के लिये । अकप्पियं = अग्राह्य । भवे = होता है। दिंतियं = देने वाली से। पडियाइक्खे = निषेध करते हुए कहे कि । तर = वैसा आहार । मे = मुझको। ण कप्पड़ = नहीं कल्पता है ।
भावार्थ-साधुओं के लिये वह आहार अग्राह्य होता है, इसलिये साधु देने वाली को निषेध करते हुए कहे कि मुझको वैसा आहार नहीं कल्पता है।
हिन्दी पद्यानुवाद
जं भवे भत्तपाणं तु, कप्पाकप्पम्मि संकियं । दिंतियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पड़ तारिसं ।।44।।
कल्प्य अकल्प्य विषय में शंकित, जो होवे भोजन पानी। भिक्षा दात्री को मुनि बोले, मुझे न लेना वह अन्न पानी ।। अन्वयार्थ-जं जो । भत्ता तु = आहार- पानी। कप्पाकप्पम्मि = ग्राह्य-अग्राह्य में । संकियं = शंकायुक्त । भवे = हो, वैसा आहार कोई दे तो साधु । दिंतियं = देने वाली से । पडियाइक्खे = कहे कि । मे = मुझे । तारिसं= ऐसा आहार लेना । ण कप्पड़ = नहीं कल्पता है।
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भावार्थ- जिस आहार के विषय में कल्प्य - अकल्प्य की या सदोषता निर्दोषता की शंका हो जाय और वैसा आहार कोई देना चाहे, तो साधु देने वाली से कहे कि इस प्रकार का आहार मुझको लेना नहीं कल्पता है ।