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[दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद
संयत विरत और पापों का, निषेध या प्रतिघात किया। भिक्षु भिक्षुणी एकाकी, अथवा परिषद् में भाग लिया ।। हो काल दिवस या रजनी का, जाग्रत या गहरी निद्रा का। ऐसे ही सेवा पठन हेतु, श्रम खिन्न भाव से रहने का ।। कीट, पंतगे, कुंथु चींटियाँ, हाथ पैर के भागों पर । जंघा, भुजा, उदर, वक्षस्थल, सिर पर और पात्र ऊपर ।। कंबल पाद प्रोंछन आदिक पर, रजोहरण या पूँजनी पर । स्थंडिल पात्र दण्ड के ऊपर, चौकी वा पाटे के ऊपर ।। शय्या संस्तारक अन्य तथा, ऐसे विध विध उपकरणों पर। पहले कहे हुए प्राणी गण, काय तथा उपकरणों पर ।। बार बार प्रतिलेखन कर, यतना से उनको दूर करे ।
बिना परस्पर टकराये, जीवों को ले एकान्त धरे ।। अन्वयार्थ-से भिक्खूवा.. .............जागरमाणे वा ।।
वह साधु अथवा साध्वी जो संयत, विरत, पाप कर्म का हनन करने वाले तथा भविष्यकाल में पाप के त्यागी हैं, दिन में या रात में एकाकी अथवा सभा में, सोये या जाग्रत दशा में
से कीडं वा = उन कीड़े, लट आदि को। पयंगं वा = पतंगे को। कुंथु वा = कुंथु को। पिविलियं वा = चींटी को । हत्थंसि वा = हाथ पर । पायंसि वा = पैर पर । बाहुंसि वा= भुजा पर । उरुंसि वा = जाँघ पर । उदरंसि वा = पेट पर। सीसंसि वा= सिर पर । वत्थंसि वा = वस्त्र पर। पडिग्गहंसि वा = पात्र पर । कंबलंसि वा = कम्बल पर । पायपुच्छणंसि वा = पादपोंछन अर्थात् पैर पौंछने के वस्त्र पर । रयहरणंसि वा = रजोहरण पर । गोच्छगंसि वा = पूँजनी पर । उडगंसि वा = स्थंडिल पात्र पर । दंडगंसि वा = दण्ड या लाठी पर। पीढगंसि वा = चौकी पर । फलगंसि वा = पाटे पर । सेज्जंसि वा = शय्या पर । संथारगंसि वा = छोटे आसन पर । अन्नयरंसि वा = अन्य किसी । तहप्पगारे = इसी प्रकार के । उवगरणजाए = उपकरण पर । तओ = आने पर, वहाँ से । संजयामेव = यतनापूर्वक । पडिलेहिय पडिलेहिय = देख-देख कर । पमज्जिय पमज्जिय = पूँज-पूँज कर । एगंतमवणिज्जा = एकान्त स्थान पर अलग रख दे या कर दे। नो णं संघायमावज्जेज्जा = जिससे पीड़ा हो उस प्रकार इकट्ठा करके न रखे।
भावार्थ-उपर्युक्त सूत्र में त्रसकाय की हिंसा से बचने की शिक्षा दी गई है । संयत-विरत आदि गुणों