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[दशवैकालिक सूत्र भावार्थ-अहिंसाव्रती को खड़े रहने के लिये भी अविधि का वर्जन करना होता है। सचित्त पृथ्वी आदि पर बिना देखे खड़ा रहना, इधर-उधर वर्जित स्थानों की तरफ देखते रहना, हाथ पैर की चंचलता करना, यह सब अयतना है, अयतना से खड़ा रहने वाला छोटे-बड़े जीवों की हिंसा करता है, हिंसा से पाप कर्म का बन्ध होता है और उसके कड़वे फल भोगने पड़ते हैं।
अजयं आसमाणो य, पाणभूयाइं हिंसइ ।
बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ।।3।। हिन्दी पद्यानुवाद
यत्न रहित बैठे कोई, प्राणी की हिंसा करता है।
वह बन्ध पाप का करता है, इससे कड़वा फल मिलता है।। अन्वयार्थ-अजयं आसमाणो य = अयतना से बैठा हुआ। पाणभूयाइं हिंसइ = प्राणियों की हिंसा करता है । बंधइ पावयं कम्म= इससे पाप कर्म का बन्ध होता है। तं से कडुयं फलं होइ = वह पाप कर्म उस प्राणी के लिये कड़वा फल देने वाला होता है।
भावार्थ-चलने-फिरने की तरह बैठना भी हिंसा का कारण है। बिना देखे जीव-जन्तु वाले स्थान में बैठना तथा अंग-उपांगों की चंचलता करते हुए बैठना अयतना है । कुर्सी, मंच आदि पर बैठना अयतना का कारण है । अयतना से बैठने वाला त्रस-स्थावर जीवों की हिंसा करता है । हिंसा से अशुभ कर्म का बन्ध होता है, जो लोक और परलोक में कटफलदायी होता है।
अजयं सयमाणो य, पाण भूयाइं हिंसइ ।
बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ।।4।। हिन्दी पद्यानुवाद
यत्न रहित सोने वाला, प्राणी की हिंसा करता है।
वह बन्ध पाप का करता है, इससे कड़वा फल मिलता है।। अन्वयार्थ-अजयं सयमाणो य = अयतना से शयन करता हुआ। पाणभूयाइं हिंसइ = प्राणभूत की अर्थात् छोटे-बड़े जीवों की हिंसा करता है। बंधइ पावयं कम्म = उससे पाप कर्म का बन्ध होता है। तं से होइ कडुयं फलं = जो उसके लिये कटु फलदायी होता है।
भावार्थ-अहिंसा व्रत के निर्दोष पालन करने हेतु, अधिक सोना, आसन के बिना देखे, बिना पूँजे सोना, आलस्य में करवटें बदलते रहना यह अयतना है। अयतना से सोने वाला , खटमल, मच्छर आदि जीवों की हिंसा करता है। हिंसा से पाप कर्म का बन्ध होता है जो भवान्तर में कड़वे फल देने वाला होता है।