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चतुर्थ अध्ययन
[37 सव्वे मणुआ, सव्वे देव्वा, सव्वे पाणा परमाहम्मिया, एसो खलु छट्ठो जीवनिकाओ 'तसकाओ' त्ति' पवुच्चइ ।।७।। हिन्दी पद्यानुवाद
जो ये अनेक चलने वाले, जगती में त्रस कहलाते हैं। अंडज', पोतज', रसज', जरायुज', स्वेदज', प्राणी होते हैं।। संमच्छिम, उदभिज, उपपातिक. चेष्टा है जिनके जीवन में। ज्ञात अपेक्षा से कितनी, होती है काम क्रिया इनमें ।। सम्मुख आना पीछे जाना, संकोचन अंगों का करना । निज हाथ-पाँव को फैलाना, इच्छा से रुदन भ्रमण करना ।। होना उद्विग्न भयादि देख, स्वस्थान छोड़कर भग जाना। यों इनके गमनागमनों से, है सिद्ध प्राणधारी कहना ।। सब कीट पतंगे जो प्राणी, फिर कुन्थु पिपीलिका तन वाले। हैं दो इन्द्रिय त्रिइन्द्रिय सब, चतुरिन्द्रिय पंच इन्द्रिय वाले ।। तिर्यक् योनिज और नारकी, मनुज देव को तन प्यारे ।
ये त्रसकाय के अन्तर्निहित,गतिशील कहे जाते त्रस तन वाले ।। अन्वयार्थ-पुण = फिर । से जे इमे = अब जो ये । अणेगे बहवे तसा पाणा = अनेक प्रकार के बहुत से त्रस जीव हैं । तं जहा = जैसे कि । अंडया = अंडज-अंडे से उत्पन्न होने वाले पक्षी आदि । पोयया = पोतज-हाथी चमगादड़ आदि पोत यानी कोथली में लिपटे हुए । जराउया = जरायुज-जरायु सहित पैदा होने वाले गाय, भैंस, मनुष्य आदि । रसया = रसज-रस में विकार होने से उत्पन्न होने वाले द्वीन्द्रियादिक जीव । संसेइया = संस्वेदज-पसीने से उत्पन्न होने वाले जूं, लीख आदि जीव । समुच्छिमा = संमूर्छनजबिना माता-पिता के संयोग से उत्पन्न होने वाले सम्मूर्छिम कीड़े, पतंगे आदि । उब्भिया = उद्भिज-भूमि फोड़कर पैदा होने वाले जीव जैसे टिड्डी आदि । उववाइया = औपपातिक देव-नारकी जीव । जेसिं = जिन । केसिं = किन्हीं । च = और । पाणाणं = प्राणियों के । अभिक्कंतं = सामने आना । पडिक्कंतं = पीछे जाना । संकचियं = संकोच करना । पसारियं = अंग फैलाना । रुयं = शब्द करना। भंतं = भ्रमण करना। तसियं = त्रस्त, भयभीत होना । पलाइयं = भागना । आगई-गई = आगति और गति के। विन्नाया = ज्ञाता होना, यह त्रस जीव की पहचान है। त्रस कौन ? जे य = जो ये । कीडपयंगा = कीट पतंग हैं । जा य = और जो । कुंथुपिवीलिया = कुंथु तथा पिपीलिका-कीड़ी है। सव्वे = सब । बेइंदिया = दो इन्द्रियों वाले जीव । सव्वे तेइंदिया = सब तीन इन्द्रियों वाले जीव । सव्वे चउरिंदिया = सब चार इन्द्रियों वाले जीव । सव्वे पंचिंदिया = सब पाँच इन्द्रियों वाले जीव । सव्वे तिरिक्ख जोणिया = सब तिर्यंच योनि के