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चतुर्थ अध्ययन
जीवन भर के लिये तीन करण और तीन योग से मन वचन और काया से मैथुन सेवन करूँगा नहीं, सेवन करवाऊँगा नहीं, मैथुन सेवन करने वालों को अच्छा समझूगा नहीं। तस्स भंते!..
..वोसिरामि। हे भगवन् ! पहले के मैथुन सेवन का, प्रतिक्रमण करता हूँ, निन्दा करता हूँ, गुरु साक्षी से गर्दा करता हूँ और अपनी उस पापकारी आत्मा का व्युत्सर्ग करता हूँ। चउत्थे भंते!...
.....वेरमणं। हे भगवन् ! मैं चौथे महाव्रत में उपस्थित हूँ, सर्वथा मैथुन से निवृत्त होता हूँ।
भावार्थ-पहले तीन महाव्रतों में हिंसा, मृषावाद, और अदत्तादान का विरमण होता है। जो मैथुनत्याग के बिना यथावत् नहीं पाला जा सकता । अत: अहिंसा, सत्य एवं अचौर्य की निर्दोष आराधना के लिये चौथे महाव्रत में मैथुन का विरमण (त्याग) किया जाता है।
औदारिक और वैक्रिय शरीर के सम्बन्ध से मैथुन 18 प्रकार का होता है। शिष्य प्रतिज्ञा करता है कि-“हे भगवन् ! मैं देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी किसी प्रकार का मैथुन सेवन करूँगा नहीं, दूसरों को करवाऊँगा नहीं, और मैथुन सेवन करने वालों को भला जागूंगा नहीं, जीवन पर्यन्त तीन करण, तीन योग सेमन, वाणी और काया से।” वर्तमानकाल की साधना में, भूतकाल की स्मृति-चंचलता उत्पन्न नहीं करे, इस दृष्टि से पूर्व के भुक्त भोगों के लिये शिष्य प्रतिक्रमण करता है और निंदा एवं गुरु साक्षी से उसकी गर्दा करके उससे दूषित आत्मा का व्युत्सर्ग करता है।
। प्रत्येक महाव्रत की सुरक्षा के लिये आचारांग सूत्र में पाँच-पाँच भावनाएँ बतलाई गई हैं, किन्तु ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये पाँच भावनाओं के अतिरिक्त नववाड़ अलग से बतलाई गई हैं। नववाड़ के साथ ब्रह्मचर्य की आराधना करने वाला, देवों का भी पूजनीय होता है। जैसे कहा है-'बंभयारिं नमसंति, दुक्कर जे करंति ते।' (उत्तराध्ययन 16/16)
अहावरे पंचमे भंते ! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं, सव्वं भंते ! परिग्गहं पच्चक्खामि, से गामे वा', नगरे वा, रणणे वा', अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा, नेव सयं परिग्गहं परिगिण्हिज्जा, नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगिण्हाविज्जा, परिग्गहं परिगिण्हते वि अन्ने न समणुजाणिज्जा, जावज्जीवाए तिविहं 1-3.श्री अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संस्कृति रक्षक संघ द्वारा सैलाना से प्रकाशित सम्वत् 2020 की प्रति में तथा साधु मार्गी जैन संघ द्वारा बीकानेर
से प्रकाशित (प्रकाशन तिथि-अलिखित) प्रति में इनका (गामे वा, नगरे वा, रण्णे वा) का उल्लेख नहीं है।