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कुछ स्कन्ध बीज, कुछ बीजरुहा, संमूर्च्छिम और तृणादिकाय । ये हैं सचित्त और बीजयुक्त, शस्त्रों से परिणत हो नहीं काय ।। अन्वयार्थ - वणस्सई वनस्पतिकाय । चित्तमंतमक्खाया = चेतना वाली कही गई है । सत्थपरिणणं = शस्त्र परिणत के | अन्नत्थ = अतिरिक्त वनस्पति में । अणेगजीवा = अनेक जीव । पुढोसत्ता = पृथक्-पृथक् सत्ता वाले कहे गये हैं। तं जहा = जैसे वनस्पति के मुख्य प्रकार ये हैं। अग्गबीया - मूलबीया-पोरबीया - खंधबीया - बीयरुहा - संमुच्छिमा - तणलया = 1. अग्रबीज, 2. मूलबीज, 3. पर्वबीज, 4. स्कन्धबीज, 5. बीजरुह, 6. संमूर्च्छिम, 7. तृणलता । वणस्सईकाइया : वनस्पतिकायिक । सबीया = बीज सहित । चित्तमंतमक्खाया = चेतना वाली कही गई है । सत्थपरिणएणं = शस्त्र परिणत के | अन्नत्थ = अतिरिक्त वनस्पति में । अणेग जीवा अनेक जीव । पुढो सत्ता = पृथक्-पृथक् सत्ता वाले कहे गये हैं।
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[दशवैकालिक सूत्र
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भावार्थ-वनस्पति चेतना वाली है। वनस्पति में अनेक जीव पृथक्-पृथक् सत्ता वाले हैं। मुख्य रूप सूक्ष्म, साधारण और प्रत्येक ऐसे वनस्पति के 3 प्रकार हैं । अग्रबीज, मूलबीज, पर्वबीज, स्कन्धबीज, बीजरुह, संमूर्च्छिम, तृण और लता ये वनस्पति के मुख्य प्रकार हैं। इनमें सूक्ष्म वनस्पति के जीव लोक व्यापी हैं। ये किसी से मारे नहीं मरते । इनकी विराधना श्रद्धना, प्ररूपणा एवं उपेक्षा भाव की दृष्टि से होती है । प्रकारान्तर से वनस्पति के आठ प्रकार बतलाये गये हैं।
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अग्नि, नमक आदि शस्त्रों से अचितीकृत के अतिरिक्त शेष वनस्पति सचित्त मानी गई है । वनस्पति के जीव मनुष्य की भाँति विविध अवस्थाओं को प्राप्त करते हैं।
जैसे मनुष्य का जन्म होता है, वैसे वनस्पति भी उत्पन्न होती है। मनुष्य बढ़ता है, ऐसे वनस्पति भी पोषण पाकर बढ़ती है। मनुष्य चेतना युक्त है, ऐसे ही वनस्पति भी चेतना युक्त है। मनुष्य का अंग कटने पर वह म्लान होता है, वैसे ही वनस्पति भी म्लान होती है। मनुष्य आहार करता है, वैसे वनस्पति भी आहार लेती है। मनुष्य तन अनित्य है, ऐसे ही वनस्पति भी अनित्य है । मनुष्य तन में चय - उपचय होता है, वैसे वनस्पति भी अपचित उपचित होती है ।
से पुण इमे अगे बहवे तसा पाणा । तं जहा - 1. अंडया, 2. पोयया, 3. जराउया, 4. रसया, 5. संसेइमा, 6. संमुच्छिमा, 7. उब्भिया, 8. उववाइया, जेसिं केसिं च पाणाणं अभिक्कंतं, पडिक्कंतं, संकुचियं, पसारियं, रुयं, भंतं, तसियं, पलाइयं, आगइगइविण्णाया जे य कीडपयंगा जा य कुंथु पिवीलिया, सव्वे बेइंदिया, सव्वे तेइंदिया, सव्वे चउरिंदिया, सव्वे पंचिंदिया, सव्वे तिरि-क्खजोणिया, सव्वे नेरइया,