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गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ३९ सुरतजिले में दिगम्बर जैनियोंकी वस्ती १०० व १५० वर्ष पहिले निम्न स्थानोंपर थी। वहां पर मंदिरजी भी थे ।
१ - बलसाड - यहां अब कोई नहीं है न मंदिर है । २ - मंदही - यहां अब कोई नहीं है न मंदिर है । परन्तु यहांके लिखे हुए कई ग्रंथ मिलते हैं ।
३ - रांदेर - यहां अब दो घर व एक जूना जिन मंदिर है । ४ - हांसोट - यहां अब कोई नहीं है न मंदिर है परन्तु यहां लिखे ग्रंथ मिलते हैं
५ - महुआ- यहां अब भी १० घर हैं, श्री विघ्नहर पर्श्वनाथका अतिशय युक्त प्राचीन जिनमंदिर है व संस्कृतका अच्छा शास्त्रभंडार है ।
६ - कोदादा - यहां अब कोई नहीं है न मंदिर है, परंतु बड़ौदा नवी पोलके दि० जैन चैत्यालय में विराजित श्रीसकलकीर्तिकृत संस्कृत श्रीपालचरित्रसे पता लगता है कि कोदादा में श्रीशीतलनाथस्वामीका मंदिर सं० १६३७ में मौजूद था । ग्रंथलिपिकी प्रशस्ति जो अंतिम पत्र ६७ पर दी हुई है इस भांति है:
“ संवत १६३७ वर्षे वैशाख वदि ११ सोमे अदेहीकोदादा शुमस्थाने श्रीशीतलनाथचैत्यालये श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये भ० श्रीपद्मनंदिदेवाः तत्पट्टे भ० श्रीदेवेन्द्रकीर्त्तिदेवाः तत्पट्टे भ० श्रीविद्यानंदिदेवाः तत्पट्टे भ० श्रीमल्लिभूषणतत्पट्टे भ० श्रीलक्ष्मीचंद्र पट्टे भ० श्रीवीरचंदपट्टे भ० श्रीज्ञानभूषणपट्टे भ० श्रीप्रभाचंद्रः तत्प भ० श्रीवादिचंद्रः तेषां मध्ये उपाध्यायधर्मकीर्ति स्वकर्मक्षयार्थे लोख ।
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इस लेख में जितने भट्टारकोंके नाम हैं उनका नाम व ग्राम
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