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अध्याय दूसरा।
३०० वर्षोंमें १० भट्टारकोंका क्रमवार होना सर्वथा संभव है। विद्यानन्दिके पीछेके भट्टारकोंके नाम ये हैं:१४ श्री देवेन्द्रकीर्ति (इन्होंने पादरा तथा आमोदके मंदिर
बंधवाये हैं। इनके पास १६ शिष्य रहते थे। १५ ,, विद्याभूषण (इन्होंने महुवा, सूरत, अंकलेश्वर, सजोत,
सोजित्राके मन्दिर बंधवाये । इनके एक शिष्य पण्डित भाणा था कि जिन्होंने व्याराका मन्दिर बंधवाके सं० १८७१ में प्रतिष्ठा की तथा सोजित्रामें एक मंदिरका मंडप बंधवाया । इनके शिष्य पण्डित पीताम्बर थे, जिन्होंके लिखे हुए कई ग्रन्थ पादराके मन्दिरमें
मौजूद हैं।) १६ ,, धर्मचंद्र। १७ ,, चंद्रकीर्ति (ये बंबईवाले सेठ सौभागशाह मेघरानके
भाई थे। संवत् १९२८ में नरोड़ामें देवलोक गये। वहां एक प्रतिष्ठा भी कराई थी ।इनके शिष्य पण्डित शिवलालजी महुवामें रहते थे और पालीताणा क्षेत्रपर देखरेख रखते थे। इन्होंने शिखरजीकी यात्रा करते
हए सं० १९२९ में शिखरजीकी एक पूजा रची है।) १८,, गुणचंद्र (बागड़ देशमें कई कुरीतियां बंद कराई। जैसेकन्यादानमें गर्दभका दान। अहमदाबाद में रायकवालजातिने वैष्णवकी कंठी बांध ली थी सो तुड़वाके उनके लिये मंदिर बंधवाया। ये अभी हालमें विद्यमान है।)
१९ , सुरेन्द्रकीर्ति (ये भी हाल में विद्यमान हैं।)
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