Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्र कालमानं भवतीति । 'एवइयं जाव करेज्जा' एतावन्तं यावत्कुर्यात् एतावकालपर्यन्तमेव त्रीन्द्रियगतिं पृथिवीगतिं च सेवेत-तथा एतावत्कालपर्यन्तमेष त्रीन्द्रियगतौ पृथिवीगतौ च गमनागमने कुर्यादिति १-२-३ । 'मज्झिमा तिन्निगमगा तहेव' मध्यमास्त्रयो गमका स्तथैव, यथैव मध्यमा द्वीन्द्रियगमा इति । 'पच्छिमा वि तिमि गमगा तहेच' पश्चिमाश्चरमा अपि त्रयो गमका स्तथैव यथैव चरमा स्त्रयो गमा इति । द्वीन्द्रिय चरमगमापेक्षया श्रीन्द्रियचरमगमे वैलक्षण्यं दर्शनायाह-'णवरं' इत्यादि, ‘णवर' नवरम्-केवलम् 'ठिई जहन्नेणं एगूगपन्नं राई दियाई" स्थितिर्जघन्येन एकोनपश्चाशद्रात्रिदिवम् तथा 'उक्कोसेण वि एगणपन्नं राइंदियाई' उत्कर्ष तोऽपि एकोनपश्चाशद्रात्रिदिवम् चरमगमत्रयेऽपि यह तेइन्द्रिय जीव इतने काल तक ही तेइन्द्रियगति को और पृथिवी. कायिक गति का सेवन करता है। और इतने ही काल तक वह उस गति में गमनागमन करता है १-२-३। 'मज्झिमा तिनि गमगा तहेव' मध्यम जो तीन गम हैं वे भी द्वीन्द्रिय के मध्यम गम के जैसे हैं। 'पच्छिमा वि तिन्नि गमगा तहेव' और अन्तिम तीन गमक भी बीन्द्रिय के अन्तिम तीन गमकों के ही जैसे हैं। परन्तु द्वीन्द्रिय के चरम गमकी अपेक्षा जो तेइन्द्रिय के चरम गममें वैलक्षण्य है, वह इस प्रकार से हैंठिई जहन्नेणे एगूणपन्नं राइंदियाई उक्कोसेण वि एगूणपन्नं राइ दियाई' स्थिति जघन्य से ४९ रात्रि-दिन की है और उत्कृष्ट से भी वह ४९ही रात-दिन की है, तात्पर्य कहने का यह है कि यहां अन्त के तीनों गमों પૃથ્વીકાયની ગતિનું સેવન કરે છે. અને એકલા જ કાળ સુધી તે ગમનાगमन-म१२ ४१२ ३२ . १-२-3
'मज्झिमा तिन्नि गमगा तहेव' मध्यनारे १ मा ६॥ छ तेत्र आमा छन्द्रियाणा वाना मध्यम प्रमाणे छे. 'पच्छिमा वि तिनि गमगा तहेव' तया दसरा ए मा ५४ मन्द्रियान मी प्रमाणे જ છે. પરંતુ બે ઈન્દ્રિયવાળા જીના છેલ્લા ગામની અપેક્ષાએ ત્રણ ઈદ્રિય पाणी वान छेदा
पा छे, मारीत छ.-'ठिई जहन्ने] एगणपन्न राइ दियाई उक्कोसेण वि एगणपन्न राइ दियाई' स्थिति न्यथा ૪૯ ઓગણપચાસ અહેરાત્ર-શત દિવસની છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ તે ઓગણપચાસ દિનરાતની જ છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-અહિયાં છેહલા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫