Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
भगवतीसत्रे
जघन्यस्थितिकत्वेनोत्पत्तौ अप्रशस्ता - अशुमा एव भवन्ति 'तइयगमए पसस्था भवति' तृतीयगमके प्रशस्ताः शुमा अध्यवसाया भवति 'सेसं तं चैव निरवसेसं' शेषम् - अध्यवसायातिरिक्तं सर्वमपि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमकरणोतमेव भवतीत्यवसेयमिति ९ ।
३६६
अकायिकादिभ्यश्च मनुष्योत्पादमतिदेशेनाङ - 'जइ आउक्काइएहिंतो' यदि अकायिकेभ्य उत्पद्यन्ते हे मदन्छ । यदि मनुष्या अकायिकेभ्य आगत्य समुस्वयन्ते तदा कियत्कालस्थितिकेषु मनुष्येवृस्पद्यन्ते इति प्रश्नः । उत्तरं पूर्वप्रक अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं। 'बितियगमए अपसस्था' तथा मध्यम के द्वितीयगमक में जघन्य स्थिति वाले पृथिवीकाधिक की जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पत्ति होने से उसके अध्यवसाय अप्रशस्त होते है । 'तयगमए पत्था भवंति एवं तृतीय गमक में जघन्यस्थिति वाले पृथिवीकायिक की उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पत्ति होने से उसके अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं। 'सेस तं चैव निरवसेस' इस प्रकार अध्यवसाय के अतिरिक्त और सब द्वारों का कथन पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक के प्रकरण में कहे गये अनुसार ही है ९ ।
अब सूत्रकार अष्कायिक आदि से मनुष्य के उत्पाद का कथन अतिदेश से करते हैं 'जह आक्काइए हितो' इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है - हे भदन्त ! यदि अष्कायिकों से आकरके जीव मनुष्यों में उत्पन्न होता है तो वह कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर पूर्व प्रकरण के अतिदेश से देते हुए
अप्रशस्त अध्यवसाय हाय छे. 'बितियगमए अपसत्था' तथा मध्यना श्रील ગમમાં જઘન્ય સ્થિતિવાળા પૃથ્વીકાયિકની જઘન્ય સ્થિતિવાળા મનુષ્ચામાં उत्पत्ति थवाथी तेने अप्रशस्त अध्यवसाय होय हे 'तुइयगमए पसत्था भवंति' त्रीन गभमां धन्य स्थितिवाणा पृथ्विअधिउनी उत्कृष्ट स्थितिवाजा मनुष्यामां उत्पत्ति थवाथी तेने प्रशस्त अध्यवसाय होय छे. 'सेसं तं चैव निरवसेस' या रीते अध्यवसाय शिवरायतु मील तमाम द्वारा समाधी स्थन પોંચેન્દ્રિય તિય ચર્ચાનિકના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. પ્રા
હવે સૂત્રકાર અષ્ઠાયિક વિગેરેમાંથી મનુષ્યના ઉત્પાતનું કથન અતિदेशथी ४रे छे. 'जन आउनका इरहितो' या सूत्रांशथी गौतमस्वाभीचे अने એવું પૂછ્યું છે કે—હે ભગવન જો અાિયકામાંથી આવીને જીવ મનુષ્યામાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ પહેલાના પ્રકરણના અતિદેશથી કહે છે કે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫