Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.२ सू०१ द्रव्यप्रकाराणां परिमाणादिकम् ५६३ नो असंखेज्जा अणता' तत्केगार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते जीवद्रव्पाणि नो संख्ये. यानि-नो असंख्येयानि किन्तु अनन्तानि सन्तीति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'अपना नेरइया' असंख्पाता नैरयिकाः, नारकजीवा असंख्याताः सन्तोति भावः 'जाव असंखेज्ना बाउकाइया' यावन असंख्याता वायुकाधिकाः, अत्र यावत्पदेन पृथिवीकायिका कायिक तेजस्कायिकानां संग्रहो भपतीनि 'वणस्सइकाइया अगंता' वनस्पति कायिका अनन्ताः । 'असंखेज्जा बेइंदिया' असंख्याता द्वीन्द्रियाः 'ए जाव वेमाणिशा' एवं यावत् असं ख्याता वैमानिक देवाः अत्र यावत्पदेन त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकइसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'नो संखेना, नो असंखेज्जा, अणंता' हे गौतम ! जीवद्रव्य न संख्यात हैं, न असंख्यात हैं किन्तु वे अनन्त हैं। __ अब गौतम पुनः इस विषय में कारण जानने के अभिप्राय से प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से केण?णं भंते ! एवं बुच्चा जीवदव्या णं नो संखेज्जा, नो असंखेजा अणंता' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जीव द्रव्य संख्यात नहीं हैं असंख्यात भी नहीं हैं पर वे अनन्त हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! असंखेज्जा नेरइया' हे गौतम ! नारक जीव असंख्यात हैं। 'जाव असंखेज्जा वाउकाइया' यावत् असंख्यात वायुका. यिक जीव हैं। यहां यावत्पद से असुरकुमारादि दस भवनपति तथा पृथि. वीकायिक, अपकाधिक और तेजस्कायिक इनका ग्रहण हुभा है। 'वणस्सइकाइयो अणंता' वनस्पतिकायिक अनन्त हैं। 'असंखेज्जा बेइंदिया' असंख्यात दो इन्द्रिय जीव हैं। 'एवं जाय वेमाणिया' इसी प्रकार से यावत् -नो संखेजा, ना असंखेज्जा, अणंता' गौतम ! पद्र०य सभ्यात नथी અસંખ્યાત પણ નથી પરંતુ તે અનંત છે. - હવે ગૌતમસ્વામી ફરીથી આ વિષયમાં કારણ જાણવાના અભિપ્રાયથી प्रभुन मे पूछे छे -'से केणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ जीवदव्वा शं नो सखेज्जा नो असंखेज्जा अणंता' भगवन् 1५ मे या रथी हो छ। 3છવદ્રવ્ય સંખ્યાત નથી અસંખ્યાત પણ નથી, પરંતુ અનંત છે. આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु छ -'गायमा! असंखेज्जा नेरइया' हे गौतम ! ना२४७१ मस ज्यात छ. 'जाव असंखेना वाउक्काइया यावत् वायुयि व सभ्यात છે. અહિયાં યાસ્પદથી પૃથ્વીકાયિક, અપકયિક, અને તેજસ્કાયિકનો સંગ્રહ थये। छे. 'वणस्सइकाइया अणंता' नरपतिमाथि ७३ मत छे. 'असंखेज्जा बेइंदिया' में द्रिय ७. मसात छे. 'एवं जाव वेमाणियो' । रीते यातू
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫