Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसत्र
ऊर्ध्वाध आयताः पृच्छा ? गौतम ! स्यात् संख्येयाः स्याद् असंख्येयाः स्यात् अनन्ताः ॥मू०५॥
टीका-'सेढीओणं भंते !' श्रेणयः खलु भदन्त ! यद्यपि-श्रेणीशब्देन पङ्क्तिः मात्रं कथ्यते तथापि-अत्र प्रकरणबलात् आकाशपदेशश्रेणय-एव गृहीतव्याः, आकाशप्रदेश श्रेगीनामेव पक्रान्तत्वात् तत्र श्रेणयः अविवक्षितलोकालोकभेदत्वेन सामान्याः १, तथा-ता एव श्रेणयः पूर्वापरायताः२ दक्षिणोत्तरायताः३, उर्धाऽध आयताः ४। एवं लोकसम्बन्धिन्योऽलोकसम्बन्धिन्यश्च ताः श्रेगयो भवन्ति । ता:
द्रव्यादिक की अपेक्षा से संस्थान परिमाण के अधिकार को लेकर अब सूत्रकार संस्थान विशेषित लोक का भी पूर्वोक्त रूप से ही परिमाण निरूपण करने के लिये सूत्र का कथन करते हैं-'सेढीओ णं भंते ! बट्टयाए किं संखेज्जाओ' इत्यादि सूत्र ॥५॥
टीकार्थ-यहां गौतम स्वामीने प्रभु से ऐसा पूछा है-'सेढीओ णं भंते ! दवट्टयाए कि संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, अणताओ' हे भदन्त ! द्रव्य की अपेक्षा से श्रेणियां क्या संख्यात हैं ? अथवा असंख्यात हैं ? अथवा अनन्त हैं ? यद्यपि श्रेणी शब्द से पङ्क्तिमात्र का कथन होता है अर्थात् श्रेणी शब्द का अर्थ पङ्क्तिमात्र है फिर भी यहां पर प्रकरण के वश से आकाश प्रदेश पङ्क्तियां श्रेणी शब्द से गृहीत हुई हैं। इस प्रकार लोक
और अलोक के भेद की विवक्षा किये बिना ही वे यहां सामान्य रूप ग्रहीत होती हैं। ये श्रेणियांपूर्व से पश्चिम तक लम्बी हैं, दक्षिग से उत्तर तक लम्बी हैं और उर्व से अधोभाग तक लम्बी हैं। इस प्रकार की ये श्रेणियां लोक में भी हैं और अलोक में भी हैं। इस सब अभिप्रायको
દ્રવ્ય વિગેરેની અપેક્ષાથી સંસ્થાન પરિમાણના અધિકારથી હવે સૂત્ર કાર સંસ્થાન વિશેષ લેકનું પૂર્વોક્ત પ્રકારથી જ પરિમાણ નિરૂપણ કરવા માટે सूत्रतुं प्रथ- 3रे छे 'सेढीओ णं भंते ! व्वयाए कि संखेज्जाओ' त्या.
21 - वे गौतमस्वामी प्रभुश्रीन में पूछे छे ?-'सेढीओ ण भंते ! दवट्याए कि संखेजाओ असंखेज्जाओ' 8 सपनद्रव्यनी अपेक्षाथी श्रेणीयो સંખ્યાત છે? કે અસંખ્યાત છે ? અથવા અનંત છે? જોકે શ્રેણી શબ્દથી પંક્તિનું ગ્રહણ-કથન થાય છે, અર્થાત્ શ્રેજી શબ્દનો અર્થ પંક્તિ માત્ર છે, તે પણ અહીંયાં પ્રકરણ વશાત આકાશ પ્રદેશ પંક્તિઓ શ્રેણી શબ્દથી ગ્રહણ થઈ છે. આ રીતે લેક અને અલકના ભેદની વિવક્ષા કર્યા વગર જ તેઓ અહીંયાં સામાન્ય પણુથી ગ્રહણ થાય છે, આ શ્રેણી પૂર્વથી પશ્ચિમ સુધી લાંબી હોય છે. દક્ષિણથી ઉત્તર સુધી લાંબી છે. અને ઉપરથી નીચે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫