Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ. ४ सू०९ पुद्गलानां कृतयुग्मादित्वम्
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संख्याsपहारे द्विशेषात् । 'संखेज्जपरसिए णं भंते ! पोग्गले पुच्छा ? संख्येय प्रदेशिकः खलु मदन्त । पृच्छा हे भदन्त ! संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धः किं कृतयुग्मः ज्योजो द्वापयुग्मः कल्पोजो वेति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय कडजुम्मे जासिय कलिओगे' स्यात् कृतयुग्मो यावत् स्यात् करयोजः, संख्यातपदेशिकस्कन्धस्य विचित्र संख्यात्वाद् भजनया चातुर्विध्यं भवतीति । 'एवं असं खेज्नपएसिए वि' एवं संख्येयमदेशिक स्कन्धवत् असंख्येयप्रदेशिक स्कन्धोऽपि भजनया कृतयुग्नादिरूपो भवतीति । 'एवं अनंतपएसिए वि' अनन्तप्रदेयुग्मराशिरूप ही होता है। कृतयुग्मादिरूप नहीं होता है। क्योंकि चार की संख्या से अपहृत करने पर अन्त में २ शेष रहते हैं । 'संखेज्जप एसिए णं भंते ! पोग्गले पुच्छा' अब श्रीगौतमस्वामी ने प्रभु से इस सूत्रद्वारा ऐसा पूछा है कि हे भदन्त ! जो पुद्गल स्कन्ध संख्यात प्रदेशों वाला होता है, वह क्या कृतयुग्मरूप ही हैं ? अथवा योजरूप अथवा द्वापरयुग्मरूप होता है ? अथवा कल्यो जरूप होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - हे गौतम! 'सिय कडजुम्मे जाव सिय कलिभोगे' संख्यातप्रदेशी स्कन्ध विचित्र संख्यावाला होने से चारों राशिरूप होता है। कदाचित् वह कृतयुग्मराशिरूप भी होता है । कदाचित् वह ज्योजराशिरूप भी होता है। कदाचित् वह द्वापरयुग्मरूप भी होता है और कदाचित् वह कल्पोजराशिरूर भी होता है। 'एवं असंखेज्जपएसिए वि' इसी प्रकार से संख्यातप्रदेशी स्कन्ध के जैसा असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध भी भजना से कृतयुग्मादि रूप होता है । 'एवं अणतपए लिए वि' तथा इसी प्रकार
યુગ્મ વિગેરે રૂપ હાતા નથી. કેમકે ચારની સખ્યાથી અપહાર કરવાથી छेवटे २ मे शेष रहे थे. 'संखेज्जपरसिए णं भंते! पाग्गले पुच्छा' हवे શ્રીગૌતમસ્વામી પ્રભુશ્રીને એવું પૂછે છે કે-હે ભગવન્ જે પુદ્ગલ સ્કંધ સખ્યાત પ્રદેશાવાળા હાય છે, તે શું કૃતયુગ્મ રૂપ હાય છે? અથવા મ્યાજ રૂપ હાય છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે? અથવા કત્યેાજ રૂપ હાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે-હે ગૌતમ ! 'खिय कडजुम्मे जाव स्विय कलिओगे' सभ्यात प्रदेशवाणी २४४ विचित्र સખ્યાવાળા હાવાથી ચારે રાશિ રૂપ હાય છે. કાઇવાર તે કૃતયુગ્મરાશિ રૂપ હોય છે કોઈ વાર તે ચૈાજ રાશિ રૂપ પશુ હોય છે, કોઇવાર તે દ્વાપરયુગ્મ રાશિ રૂપ પણ હાય છે અને કાઇવાર તે કલ્યાજ રાશિ રૂપ પણ डाय छे. 'एवं असंखेज्जपएसिए वि' से०४ प्रमाणे अर्थात् संख्यातप्रदेशवाजी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫