Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
गौतम ! 'नत्थि अंतरं' नास्ति अन्तरम् - व्यवधानन् निष्कम्पानां नैवान्तरं भवतीति । 'एवं जाव अनंत परसियाण खंत्राणं' एवं यावत् अनन्तमदेशिकानां स्कन्धानां सैजानां निरेजानां च व्यवधानाभावो ज्ञातव्यः, बहुत्वादिति ॥ १२ ॥
सेज निरोजाना मल्पबहुत्वं कथयितुमाह- 'एसि गं' इत्यादि ।
- एएलिं णं भंते! परमाणुपोग्गलाणं सेयाणं निरेयाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वस्थोवा परमाणुपोग्गला सेया, निरेया असंखेज्जगुणा एवं जाव असंखिज्जपए सियाणं खंधाणं । एएसि णं भंते! अनंतपरसियाणं खंधाणं सेयाणं निरेयाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सवत्थोवा अनंतपएसिया खंधा निरेया, सेया अनंतगुणा । एएसि णं भंते! परमाणुरोग्गलाणं संखेजपएसियाणं, असंखेज्जपएसियाणं अनंतपएसियाण य खंधाणं सेयाणं निरेयाण य दव्वट्टयाए पएसटुयाए दव्वटुपए याए कयरे कयरेर्हितो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा अणंतपरसिया खंधा निरेया दव्वट्टयाए, अणतपएसिया खंधा सेया दव्वट्टयाए अनंतगुणार परमाणुपोग्गला सेया दव्वट्टयाए अणंतगुणा३, संखेज्जपएसिया खंधा सेया दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा४, असंखेज्जपएसिया खंधा सेया दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा५, परमाणुपोग्गला निरेया दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा ६, इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा ! नत्थि अंतरं' हे गौतम ! इनका अन्तर नहीं होता है । 'एवं जाव अनंत एसियाणं खंत्राणं' सैज एवं निरेज यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों तक का इसी प्रकार से अन्तर नहीं होता है क्योंकि ये सब बहुत होते हैं || सू० १२ ॥
छ - 'गोयमा ! नत्थि अंतर' हे गौतम! तेनु' अंतर हेतु' नथी. 'एव' जान अनंत पर सियाण खंधाण' सेन भने निरेन यावत् यानंत प्रदेशावाला સ્કંધા સુધીના સ્કંધાનું અંતર આ કથન પ્રમાણે હાતું નથી કેમકે એ બધા મહુ होय छे. ॥सू० १२॥
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
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