Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 907
________________ ८९२ भगवतीस्त्रे नाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सट्टा वा अणड्डा वा' सार्दा वा परमाणुपुद्गला अनर्धी वा परमाणुपुद्गलाः, यदा तु बहवः परमाणवः समसंख्या मान्ति तदा ते सार्दाः कथयन्ते यदा तु विषमसंख्यका अगवस्तदा ते अनः कथ्यन्ते । 'एवं जाव अणंतपएसिया' एवम् परमाणुपुद्गलवदेव द्विपदेशिकस्कन्धादारभ्य अनन्तमदेशिकान्ताः स्कन्धाः सार्दा वा अनर्दा वा भवन्तीति ॥०११॥ पुद्गलाधिकारादेव इदमप्याह-'परमाणुपोग्गले ण भंते' इत्यादि । मूलम्-परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सेए निरेए गोयमा! सिय सेए सिय निरेए, एवं जाव अणंतपएसिए। परमाणु पोग्गला गं भंते! कि सेया निरेया, गोयमा! सेया वि निरेया ___ 'परमाणुपोग्गला णं भंते ! कि सट्टा अणङ्का' हे भदन्त ! समस्त पुद्गल परमाणु क्या सार्द्ध होते हैं अथवा अन होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'सड्डा वा अणड्डा वा परमा. णुपुद्गल साई भी होते हैं और अनर्द्ध भी होते हैं। जब बहुत से परमाणु पुद्गल समान संख्यावाले होते हैं' तब वे साई कहे जाते हैं और जब वे विषम संख्यावाले होते हैं तब वे अनर्द्ध कहे जाते हैं। 'एवं जाव अणंतपएसिया' परमाणुपुद्गलों के जैसा विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तमदेशिक स्कन्ध तक के स्कन्ध सार्द्ध और अनर्द्ध दोनों प्रकार के होते हैं। जिनके समान आधे भाग हो सके वे सार्द्ध और जिनके ऐसे भाग नहीं हो सके वे अनर्द्ध हैं ॥१० ११॥ ‘परमाणुपोगला भते ! कि सड्ढा अणड्ढा' 3 सान् मया ॥ પુદ્ગલ પરમાણુ શું અર્ધા ભાગવાળા હોય છે? અથવા અર્ધા ભાગ વિનાના डाय छ १ . प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा' 3 गीत ! 'सड्ढा वा अणड्ढा वा' ५२मा पुरत मा नासा ५५ उय छ, मन અન–અર્ધા ભાગ વિનાના પણ હોય છે. જ્યારે ઘણું પરમાણુપદ્રલો સરખી સંખ્યાવાળા હોય છે, ત્યારે તેઓ સાધુ–અર્ધા ભાગ સહિતના કહેવાય છે, અને જ્યારે તેઓ વિષમ સંખ્યાવાળા હોય છે, ત્યારે તેઓ અનર્ધઅર્ધા सास विनाना उपाय छे. 'एवं जाव अणंतपएसिया' ५२मा पुराना थन પ્રમાણે બે પ્રદેશવાળા સ્કંધથી લઈને અનંત પ્રદેશવાળા સ્કંધ અર્ધા ભાગ વાળા અને અર્ધા ભાગ વિનાના એમ બન્ને પ્રકારના હોય છે. જેઓને સરખો અર્ધો ભાગ થઈ શકે તે સાર્ધ કહેવાય છે, અને જેને એ પ્રમાણે ભાગ ન થઈ શકે તે અન–અર્ધા ભાગ વિનાને કહેવાય છે. સૂ૦ ૧૧૫ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫

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