Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 918
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०१२ पुद्गलानां सकम्प-निष्कंपत्वनि० १०३ सेणं असंखेनं कालं' स्वस्थानान्तरं प्रतीत्य जघन्येन एक समयम् उत्कृष्टतोऽ. संख्येयं कालम् स्वस्थानापेक्षया जघन्येन एकसमयस्य अन्तरं भवति उत्कृष्टतो. संख्यातकालस्यान्तर भवतीत्यर्थः 'परद्वाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समर्य उकोसेणं अतं कालं' परस्थानं प्रतीत्य जघन्येन एक समयम् उत्कृष्टतोऽनन्तं कालमन्तर' भवति, द्विपदेशिका स्कन्धचलितो भूत्वा तदनन्तरमनन्तैः स्कन्धः सह कालभेदेन संबन्धं कुर्वन् अनन्तेन कालेन पुनस्तेनैव परमाणुना सह सम्बन्ध माप्य पुनश्चलति यदा, तदा परस्थानमाश्रित्य उत्कृष्टतोऽनन्तकालमन्तरं भवती. त्यर्थः । 'निरेयस्स केवइयं कालं अंतरं होई' निरेजस्य-चलनक्रियारहितस्य द्विपदेशिकस्कन्धस्य कियकालमन्तरं भवति इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सहाणतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उकोसेणं में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! सट्ठाणमंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक समय उकोसेणं असंखेज्जं कालं' हे गौतम! स्वस्थान की अपेक्षा से जघन्य एकसमय का और उत्कृष्ट से अनन्त काल का अन्तर होता है। तथा परहागंतरं पडुच्च जहणणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अणंत कालं' परस्थान की अपेक्षा जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से अनन्त कालका अन्तर होता है इसका तात्पर्य ऐसा है-कोई विप्रदेशिक स्कन्ध चलित होकर अनन्त स्कन्धों के साथ काल भेद से सम्बन्ध करता हुआ अनन्त काल के बाद पुनः उसी परमाणु के साथ सम्बन्ध को पाकर जब चलित होता है तब परस्थान की अपेक्षा उत्कृष्ट से अनन्त काल का अन्तर होता है। ____ निरेपस्स केवइयं कालं अंतरं होई' हे भदन्त ! जो बिप्रदेशिक स्कन्ध चलन क्रिया से रहित है उसका अन्तर कितने काल का होता है ? समय उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं' हे गौतम ! २१स्थाननी असाथी न्यथा से समयनु भने उत्कृष्टया सस यातनु मत२ डाय छे. तथा 'परद्वाणंतर पडुच्च जहन्नेणं एक समय उक्कोसेणं अगंतं कालं' ५२स्थाननी અપેક્ષાથી જઘન્યથી એક સમયનું અને ઉત્કૃષ્ટથી અનંતકાળનું અંતર હોય છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે-કઈ બે પ્રદેશેવાળો સ્કંધ ચલિત થઈને અનંત સ્કંધોની સાથે કાળ ભેદથી સંબંધ કરીને અનંતકાળ પછી ફરીથી પરમાણુઓની સાથે સંબંધ પામીને જ્યારે ચલિત થાય છે, ત્યારે પરસ્થાનની अपेक्षाथी थी मनतर्नु भतर डाय छे. 'निरेयस्स केवइयंकाल अंतर' હો હે ભગવન જે બે પ્રદેશોવાળે સ્કંધ ચલનક્રિયા વિનાને હોય છે, તેવા એ બે પ્રદેશવાળા સ્કંધનું કેટલા કાળનું અંતર હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री ३ -'गोयमा ! सदाणंतर पडुच्च जहण्णेणं एक समय उक्कोसेणं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫

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