Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 905
________________ भगवतीस्त्रे तिप्पएसिए' पञ्चपदेशिको यथा त्रिपदेशिकः त्रिपदेशिकवत् नो सार्द्धकिन्तु अनई एव भवतीति । 'छप्पएसिए जहा दुप्पएसिए' पदादेशिकः द्विपदेशिकचत सार्हो न तु अनर्द्ध षट्पदेशिक इति । 'सत्तपएसिए जहा तिप्पएसिए' सप्तपदेशिको यथा त्रिप्रदेशिक नो सार्द्ध किन्तु अनई इति । 'अटुपएसिए जहा दुष्प. एसिए' अष्टप्रदेशिको यथा द्विपदेशिकः । 'णवपएसिए जहा तिप्पएसिए' नवप्रदेशिको यथा त्रिप्रदेशिकः । 'दसपएसिए जहा दुप्पएसिप' दशपदेशिको यथा द्विमदेशिकः । 'संखेज्जपएसिएक भंते ! पुच्छ।' संख्येयप्रदेशिका खलु भदन्त ! होता है । 'पंचपएसिए जहा तिप्पएसिए' त्रिप्रदेशी स्कन्ध के जैसा पञ्च प्रदेशी स्कन्ध सार्द्ध नहीं होता है किन्तु अनर्द्ध होता है। 'छपएसिए जहा दुप्पएसिए' षटूप्रदेशिक स्कन्ध द्विप्रदेशी स्कन्ध के जैसा साई होता है अनर्द्ध नहीं होता है । 'सत्तपएसिए जहा तिप्पएसिए' सप्त प्रदेशी स्व.न्ध त्रिप्रदेशिक स्व.न्ध के जैसा होता है-अर्थात् अनई होता है सार्द्ध नहीं होता है। 'अट्ठपएसिए जहा दुप्पएसिए' आठ प्रदेशों वाला स्कन्ध विप्रदेशी स्कन्ध के जैसा सार्द्ध होता है अनर्द्ध नहीं होता है 'णवपएसिए जहा तिप्पएसिए' नौ प्रदेशों वाला स्कन्ध विप्रदेशिक स्त्र.न्ध के जैसा अनद्ध होता है सार्द्ध नहीं होता। 'दसपएसिए जहा दुप्पएसिए' दश प्रदेशोंवाला स्कन्ध द्विप्रदेशी स्कन्ध के जैसा सार्द्ध होता है अनर्द्ध नहीं होता है। सहित य छे. मन-AE मा दिनाना तो नथी. 'पंचपएसिए जहा तिप्पएसिए' त्र प्र१.॥ २४धना ४थन प्रमाणे पांय प्रदेशापाणे २४ સા–અર્ધા ભાગ સહિત હોતો નથી. પરંતુ અનર્ધઅર્ધા ભાગ વિનાને डाय छे. 'छप्पएसिए जहा दुप्पएसिए' ७ प्रदेशका में प्रदेशमा સ્કંધના કથન પ્રમાણે સાર્ધ–અર્ધા ભાગવાળો હોય છે. અન–અર્ધા ભાગविनानी डात नथी, 'सत्तपएसिए जहा तिप्पएसिए' सात प्रदेशापाणे २४५ ત્રણ પ્રદેશવાળા કંધના કથન પ્રમાણે અનર્થ હોય છે. સાર્ધ અર્ધમાગવાળો डात नक्षी, 'अटुपएसिए जहा दुप्पएसिए' मा प्रदेशापाणी २४ मे प्रदेश વાળા રકંધના કથન પ્રમાણે સાર્ધ–અર્ધા ભાગવાળે હોય છે. અનઈ–અર્ધા. मास विनानी डात नथी. 'णवपएसिए जहा दुपएसिए' नव प्रशवाणी સ્કંધ ત્રણ પ્રદેશેવાળા સ્કંધના કથન પ્રમાણે અનર્ધ-અધભાગ વિનાને હોય छ. सा- मागवा डरता नथी. 'दसपएसिए जहा दुप्पएसिए' इस પ્રદેશવાળ સ્કંધ બે પ્રદેશેવાળા સ્કંધના કથન પ્રમાણે સાર્ધ-અર્ધાભાગ સહિત હોય છે, અન–અર્ધાભાગ વિનાને લેતા નથી. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫

Loading...

Page Navigation
1 ... 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969