Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०११ पुद्गलानां कृतयुग्मादित्वम् ८९१ स्कन्धः किं साझेऽपर्दो वेति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय सड़े सिय अणड्डे स्यात् सार्द्ध: स्यात्-कदाचित् अनर्द्धः, तत्र यः समसंख्यप्रदेशात्मकः स्कन्धः स तु साई: यस्तु विषमसंख्यप्रदेशात्मक स स्कन्धोऽनर्द्ध इति । 'एवं असंखेज्जपएसिए वि' एवम्-संख्येयपदेशात्मकस्कन्ध इय असंख्येयप्रदेशात्मकस्कन्धोऽपि स्यात्-कदाचित् सार्द्ध कदाचिदनर्द्ध चेति । 'एवं अनंतपएसिए वि' एवम्-असंख्येयप्रदेशात्मकस्कन्धवदेव अनन्तपदेशिक स्कन्धोऽपि स्यात् सार्द्ध: स्यादनई इति । 'परमाणुपोग्गला गं भंते ! किं सड़ा अनड्रा' परमाणुपुद्गलाः खलु भदन्त ! कि सार्की अन वेति पश्नः । भगवा
'संखेज्जपएसिए णं भंते ! पुच्छा' हे भदन्त ! संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध क्या सार्द्ध होता है अथवा अनर्द्ध होता है ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय सड्डे सिय अणड्डे संख्यात प्रदेशी स्कन्ध कदाचित् सार्द्ध होता है और कदाचित् अनर्द्ध होता है। इसमें जो संख्यात प्रदेशी स्कन्ध समान संख्यावाले प्रदेशोंवाला होता है वह सार्द्ध होता है और जो विषम संख्यावाले प्रदेशोवाला होता है वह अनर्द्ध होता है । 'एवं असंखेज्जपएसिए वि' संख्यात प्रदेशात्मक स्कन्ध के जैसा असंख्यात प्रदेशात्मक स्कन्ध भी कदाचित् सार्द्ध होता है और कदाचित् अनर्द्ध होता है। 'एवं अणंतपएसिए वि' इसी प्रकार से अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध भी होता है। अर्थात् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध कदाचित् सार्द्ध होता है और कदाचित् अनर्द्ध होता है।
_ 'संखेज्जपएसिए णं भंते पुच्छा' 3 लापन सभ्यात प्रदेशापाको २४ સાઈ–અર્ધભાગ સહિત છે? અથવા અન–અર્ધાભાગ વિનાને છે? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभु श्री गौतमत्वामीन ४ छ -'गोयमा!' है गौतम ! 'सिय सडढे सिय अणड्ढे' सज्यात प्रवाणी २३ वार साय हाय છે, અને કોઈવાર અનર્ધા–અર્ધા ભાગ વિનાને હોય છે. આમાં જે સંખ્યાત પ્રદેશી ધ સરખી સંખ્યાવાળા પ્રદેશેવાળો હોય છે, તે સાથે હોય છે. અને જે વિષમ સંખ્યાવાળા પ્રદેશેવાળો હોય છે, તે અર્ધભાગ વિનાને डोय. 'एव असंखेज्जपएसिए वि' संन्यात प्रशाधना उथन प्रभाले અસંખ્યાત પ્રદેશેવાળે ધ પણ કઈવાર અર્થે ભાગવાળો હોય છે અને
वार सन-अर्धाभास विनानी डाय छे. 'एवं अणंतपएसिए वि' मेर પ્રમાણે અનન્ત પ્રદેશવાળો સ્કંધ પણ અસંખ્યાત પ્રદેશેવાળા કંધના કથન પ્રમાણે કઈવાર સાઈ હેય છે અને કોઈવાર અધભાગ વિનાને હોય છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫