Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका ठीका श०२५ उ.४ सू०११ पुद्गलानां कृतयुग्मादित्वम् ८८५ तेओगे' किं कृतयुग्मः योजः द्वापरयुग्मः कल्योनो वा । हे भदन्त ! परमाणुसम्बन्धि कालवर्णस्य पर्यायः किं कृतयुग्मादिरूप इति प्रश्नः । भगवानाह'जहा' इत्यादि । 'जहा ठिईए वत्तव्यया एवं वन्नेसु वि सव्वेसु' यथा स्थितीस्थितिविषये कृतयुग्मादीनां वक्तव्यता कथिता एवं सर्वत्रणेष्वपि वक्तव्यता तादृशो एवं वक्तव्या तथाहि-कालादि वर्ण पर्याया स्यात् कृतयुग्मरूपाः यावत् स्यात् कल्योजरूपा इति । 'गंधेसु वि एवं चेव' गन्धयोरपि एवमेव गन्धौ स्यात् कृतयुग्मरूपौ यावत् स्यात कल्योजरूपौ इति । 'एवं रसेसु वि जाव महुरोरसो त्ति' प्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं-'हे भदन्त ! जो पुद्गल परमाणु 'कालवन्नपज. वेहिं' कालवर्ण की पर्यायों द्वारा कि कडजुम्मे ते भोगे' क्या कृतयु. ग्मरूप होता है ? अथवा योजरूप होता है ? अथवा द्वापरयुग्मरूप होता है ? अथवा कल्योजरूप होता है ? तात्पर्य इसका यही है कि परमाणु सम्बन्धी कालवर्ण की पर्याय क्या कृतयुग्मादिरूप होती है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'जहा ठिईए वत्तव्यया एवं बन्नेसु वि सम्वेसु' हे गौतम ! जैसी स्थिति के विषय में कृतयुग्मादिकों की वक्तव्यता कही गई है उसी प्रकार की वक्तव्यता समस्त वर्गों के विषय में भी कहनी चाहिये अर्थात् परमाणु सम्बन्धी काल वर्ण की समस्त पर्याय कदाचित् कृतयुग्मरूप होती है यावत् कदाचित् कल्योज रूप होती हैं । 'गंधेसु वि एवं चेव' इसी प्रकार से दोनों गंध सुरभिदुरभिगंध की अपेक्षा से कदाचित् कृतयुग्म होते हैं यावत् कदाचित् प्रभुश्रीने मे पूछे छे ४-डे सावन् पुगत ५२मा 'कालवनपज्जवेहि' अावना पर्याय द्वा२। 'किं कडजुम्मे तेओगे' शुकृतयुम ३५ डाय छ? અથવા જ રૂપ હોય છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે? અથવા કોજ રૂપ હોય છે? કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-પરમાણુ સંબંધી કાળાવર્ણના પર્યાયે શું કૃતયુગ્મ વિગેરે રૂપ હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ श्री ४ -'जहा ठिईए वत्तजया एवं वन्नेसु वि सम्वेसु' हे गौतम ! સ્થિતિના સંબંધમાં જે પ્રમાણે કૃતયુગ્માદિનું કથન કર્યું છે, એજ પ્રમાણેનું કથન સઘળા વર્ગોના સંબંધમાં પણ કહેવું જોઈએ. અર્થાત્ પરમાણુ સંબંધી કાળા વર્ણના સઘળા પર્યાયે કેઈવર કૃતયુગ્મ રૂપ હોય છે. કોઈવાર જ રૂપ હોય છે, કેઈવાર દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે. અને કોઈવાર કાજ રૂપ डाय छे. 'गंधेसु वि एवं चे' से प्रभारी सुश भने थे मे
वार कृतयुग्म ३५ डाय छ, यावत् ४क्ष्या ३५ उय छे. 'एवं
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫