Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे नाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'ओघादेसेणं सिय कड जुम्मा जाव सिय कलिओगा' ओघादेशेन-सामान्यातिदेशेन स्यात् कृतयुग्माः परमाण वः यावत् स्यात् कल्योजाः, यावत्पदेन स्यात् ज्योजाः, स्याद् द्वापर युग्माः। परमाणुपुद्गलाः खलु ओघादेशतः कृतयुग्मादयो भजनया भवन्ति परमाणूना मन तत्वेऽपि संघातभेदेनानास्थितरूपत्वादिति । 'विहाणादेसे णं नो कडजुम्मा नो तेओगा नो दावरजुम्मा कलिओगा' विधानादेशेन-विशेषादेशेन, नो कृतयुग्माः नो व्योजानो द्वापरयुग्माः किन्तु कल्योजमात्रा एव भवन्तीति । एवं जाव अणंतपएसिया खंधा' एवं याग्दनन्तमदेशिकाः स्कन्धाः ओघादेशेन अनन्तप्रदेशिकाः स्कन्धाः स्यात् कृतयुग्मा: यावत् कल्योजाः विधानादेशवस्तु एकैकशः कल्योजा एव न तु कृतयुग्मादिरूपा इति । में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओगा' हे गौतम ! सामान्य के आदेश से समस्त परमाणु पुद्गल कदाचित् कृतयुग्मरूप होते हैं ! कदाचित् योजरूप होते हैं, कदाचित् द्वापरयुग्मरूप होते है और कदाचित् कल्योजरूप होते हैं। परमाणु यद्यपि अनन्त हैं अतः इनमें सिर्फ कृतयुग्मतारूप ही होनी चाहिये, परन्तु फिर भी इनमें जो अनन्तता है, वह भेद संघात द्वारा अनवस्थित है। इस कारण इनमें चतूरूपता प्रकट की गई है । 'विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो ते मोगा, नो दावरजुम्मा, कलि भोगा' परन्तु विधानादेश से-विशेष की अपेक्षा से-वे न कृतयुग्मरूप हैं, न योजरूप हैं, न द्वापरयुग्मरूप हैं किन्तु कल्यो जरूप हैं 'एवं जाव अणंतपसिया खंधा' इसी प्रकार से जो यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध हैं वे सामान्य की अपेक्षा से चतरा शिरूप हैं और विशेष की अपेक्षा से केवल कल्योजरूप ही है-कृतयुग्मरूप, व्योजरूप और द्वापरयुग्मरूप नहीं हैं।
तमा प्रभु श्री छ है-'गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओगा' 3 गौतम ! सामान्यपाथी संघमा ५२मार पुगिसो पार તયમ રૂપ હોય છે, કેઇવાર કાજ રૂપ હોય છે, કોઈવાર દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે. અને કોઈવાર કલ્યાજ રૂપ હોય છે. જો કે પરમાણુ અનત છે. જેથી તેઓમાં કેવળ કૃતયુગ્મપણું જ હોવું જોઈએ. પરંતુ તેમાં જે અનંતપણું છે, તે ભેદ સંઘાત દ્વારા આવેલ છે. તે કારણે ચારે પ્રકારપણું प्रश्ट ४२ छ. 'विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा नो तेओगा नो दावरजुम्मा कलि.
mr પરંતુ વિધાનાદેશથી-વિશેષપણાથી તેઓ કૃતયુગ્મ રૂપ નથી જ ३५ नथी. द्वापरयुम ३५ ५५५ नथी. परंतु ४क्ष्या४ ३५ छे. 'एव जाव अगंतपएसिया खंधा' मे प्रमाणे यावत् सनतप्रशाणा २४ । छ, त
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫