Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्र खलु भदन्त ! मत्यज्ञानपर्यायैः किं कृतयुग्मः व्योजादिरूपो वेति प्रश्नः ? उत्तरमाह 'जहा' इत्यादि। 'जहा-आभिणिबोहियणाणपज्जवेहिं तहेव दो दंडगा' यथा-आमिनिबोधिज्ञानपर्यायः तथैव-द्वौ दण्डको एकत्वपृथक्त्वाभ्यां वक्तव्यो मत्यज्ञानपर्यायैरपि। 'एवं सुयअन्नाणपज्जवेहि वि' एवं भुताज्ञानपर्यायैरपि द्वौ दण्डको एकत्वप्रथक्त्वाभ्याम्-एकवचन-बहुवचनाभ्यां वक्तव्याविति । एवं विभंगनाणपज्जवेहि वि-एवं विभङ्गज्ञानपर्यायरपि द्वौ दण्डको एकत्वपृथक्त्वाभ्यां भंते ! मह अन्नाणपज्जवेहि किं कडजुम्मे०' इस सूत्रद्वारा श्रीगौतम स्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है, कि हे भदन्त ! एक जीव मति अज्ञान की पर्यायों द्वारा क्या कृतयुग्मरूप होता है ? अथवा योजरूप होता है ? अथवा द्वापरयुग्मरूप होता है ? अथवा कल्योजरूप होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'जहा आभिणियोहियणाणपज्जवेहिं तहेव दो दंडगा' हे गौतम! जिस प्रकार से आभिनियोधिकज्ञान पर्यायों द्वारा एक जीव के विषय में और अनेक जीवों के विषय में कृतयुग्मादिरूप होने के दो दण्डक एकवचन और बहुवचन को लेकर कहे गये हैं-उसी प्रकार से मति अज्ञानपर्यायों द्वारा एक जीव के विषय में और अनेक जीवों के विषय में कृतयुग्मादि रूप होने के दो दण्डक कहना चाहिये । एवं सुय अन्नागपज्जवेहिं वि' इसी प्रकार से श्रुत अज्ञान की पर्यायों द्वारा भी दो दण्डक जीव के एकवचन एवं बहुवचनको लेकर कहना चाहिये। 'एवं विभंगनाणपज्जवेहि वि' इसी प्रकार से विभंगज्ञान की कि कडजुम्मे०' मा सूत्रद्वारा श्रीगौतभाभी से प्रभुश्रीन मे पूछ्युं छे हैહે ભગવન એક જીવ મતિઅજ્ઞાનના પર્યાયે દ્વારા શું કૃતયુમ રૂપ હોય છે? અથવા જ રૂપ હોય છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે? અથવા કાજ ३५ उय छ १ मा ५ना उत्तम प्रभुश्री ५ छ -'जहा आभिणिबोहिय. णाणपज्जवेहि तहेव दो दंडगा' गौतम ! २ प्रमाणे मानिनिमाविज्ञान પર્યા દ્વારા એક જીવને સંબંધમાં અને અનેક ના વિષયમાં કૃયુ... વિગેરે રૂપ હેવ ના સંબંધમાં બે ટંકે એક વચન અને બહુવચનને આશ્રય લઈને કહેલ છે, એ જ પ્રમાણે મતિ અજ્ઞાન પર્યાય દ્વારા એક જીવના વિષયમાં અને અનેક જીના વિષયમાં કૃતયુગ્માદિ રૂપ હોવાના સંબંધમાં से उवा . 'एव सुय अन्नाणपज्जवेहि वि' में प्रमाणे श्रुत. અજ્ઞાનના પર્યાય દ્વારા પણ જીવના એક વચન અને બહુવચનનો આશ્રય साधने में ही डा . 'एव विभंगनाणपज्जवेहि वि' से प्रमाणे વિર્ભાગજ્ઞાનના પર્યાય દ્વારા પણ એકવચન અને બહુવચનને આશ્રય લઈને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫