Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०८ प्र० परमाणुयुद्गलानामल्पबहुत्वम् ८३७
जपरसिया खंधा पएसट्टयाए संखेज्जगुणा' संख्येयश्देशिकाः स्कन्धाः प्रदेशार्थतया-प्रदेशारूपेण पूर्वापेक्षया संख्यातगुणाः अधिका भवन्तीति । 'असंखेज्जपएसिया खंधा पएसट्टयाए असंखेज्जगुगा' असंख्यातनदेशिकाः स्कन्धाः प्रदेशार्थतया. प्रदेशरूपेण पूर्वापेक्षया असंख्येयगुगाः-अधिका भवन्तीति । 'दबटुपएमट्ठयार' द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया-द्रव्य-प्रदेशोभयाभ्या मित्यर्थः 'सव्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा दट्टयाए' सास्तोका:-सर्वेभ्योऽल्पीयांसाः अनन्तप्रदेशिका स्कन्धा द्रव्यार्थ. तया भवन्तीति । 'तं चेत्र पएसट्टयाए अणंतगुगा' त एक-अनन्तपदेशिका एव स्कन्धाः पदेशार्थतया पूर्शपेक्षयाऽनन्त गुणा अधिकाः भवन्तीति । 'परमाणु. पोग्गला दव्वद्वपरसट्टयाए अणतगुणा' परमाणुपुद्गला द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया द्रव्यपदेशोभयरूपेण अनन्तगुणा अधिका भवन्ति । 'संखेज्जपएसिया खंधा दट्टयाए है। 'संखेज्जपएसिया खंधा पएसट्टयाए संखेज्जगुणा' संख्यातप्रदेशिक जो स्कन्ध हैं वे प्रदेशरूप से परमाणु पुद्गल की अपेक्षा संख्यातगुणे अधिक है। 'असंखेज्जपएसिया खंधा पएसट्टयाए असंखेज्जगुगा' असंख्यातप्रदेशों वाले जो स्कन्ध हैं वे संख्यातप्रदेशकों की अपेक्षा प्रदेशरूप से असंख्यातगुणे अधिक हैं । अब सूत्रकार-'दबटुपएसहयाए' द्रव्यरूप से और प्रदेशरूप से दोनों रूप से विचार करते हैं सब त्थोवा अणं तपएसिया खंधा दवट्टयाए' द्रव्यरूप से तो अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध सब से थोडे और वेही अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध पूर्व की अपेक्षा प्रदेशरूप से अनंतगुणे अधिक है। 'परमाणुपोग्गला घट्टपएसट्टयाए अणंतगुणा' तथा-परमाणु पुद्गल द्रव्यरूप से एवं प्रदेशरूप से-दोनों रूप से अनन्तगुणे अधिक है। 'संखेज्जपएसिया खंधा वट्टयाए संखेज्ज. 'संखेज्जपएसिया खधा पएसट्टयाए संखेज्ज गुणा' सात प्रदेश २ । छे, ते प्रश५४ाथी ५२मा ५६८ ४२di सातशय पधारे छ. 'असं खेज्जएसिया खधा पएसट्टयाए असंखेन्ज गुणा' असण्यात प्रशा२७। છે, તેઓ સખ્યાત પ્રદેશે કરતાં પ્રદેશપણાથી અસંખ્યાતગણું વધારે છે.
वे सूत्र४२ 'दबटुपएसट्टयाए' द्र०याथी भने प्रश५yाथी थेटले * भन्ने प्रारथी विया२ ४२ छे. 'सव्वत्थोवा अणंतपरसिया खंधा दवट्याए' દ્રવ્યપણુથી અનંત પ્રદેશળે સકંધ બધાથી કમ છે. અને એજ અનંતપ્રદેશવાળા સ્કંધે પહેલાના ધો કરતાં પ્રદેશ પણાથી અનંતગણ અધિક છે. “ઘરमाणुगोगला दबदुपएसट्टयाए अणंतगुणा' तथा ५२मा घुसा द्र०५५था भने प्रदेशपाथी भन्न प्रारथी मन तशा पधारे छे. 'संखेज्जाएसिया खंधा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫