Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 808
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०४ भावतो जीवानां कृतयुग्मादित्वनि० ७९३ वक्तव्याविति । 'चक्खुदंसण-अचक्खुदंसण-भोहिदसणपज्जवेहि वि-एवमेव' चक्षुर्दशनाऽचक्षुर्दर्शनाऽवधिज्ञानपर्यायैरपि-एवमेव-एकत्व-पृथक्त्वाभ्यां द्वौ दण्डको वक्तव्याविति । 'नवरं जस्स जं अस्थि तं भाणियन्वं' नवरम्-केवलं यस्य जोवराशे. पैदस्ति तं प्रत्येव तद्भणितव्यम् । यस्य विमङ्गज्ञानं वर्तते तं प्रत्येव विभङ्गज्ञानपर्यायैर्दण्डको एकत्व-पृथक्त्वाभ्यां वक्तन्यौ नाऽन्यं प्रतीति भावः । 'केवलदसणपज्जेहिं जहा-केवलनाणपज्जवेहि' केवलदर्शनपर्यायैः यथा-केवलज्ञानपर्यायैः । यथा-केवलज्ञानपर्यायै जीवानां कृतयुग्मत्वं कथितम् न तु-ज्यौजादिरूपत्वं केवलज्ञानस्य-अनन्तत्वादवस्थितत्वाच। तथा-केवलदर्शनपर्यायैरपि जीवानां कृतयुग्मरूपत्वमेव नतु-ज्योजादिरूपत्वम्-केवलदर्शनस्यापि-अनन्तत्वादवस्थितत्याच चतुरनत्यमेवेति भावः ।।०४॥ पर्यायों द्वारा भी जीव के एकवचन और बहुवचन को लेकर दो दण्डक कहना चाहिये-'चक्खुदंसणभचक्खुदंसण ओहिदंसणपज्जवेहिं वि' इसी प्रकार से चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शन सम्बन्धी पर्यायों द्वारा भी जीव के एकवचन और बहुवचन को लेकर दो दण्डक कहना चाहिये । 'नवरं जस्स जं अत्थि तं भाणियवं' विशेष यही है कि जिस जीवराशि के जो हो वही उसको कहना चाहिये। अर्थात् जैसे-जिस जीव को विभङ्गज्ञान है, उसके प्रति उस विभङ्गज्ञान की पर्यायों द्वारा ही उस जीव के एकत्व और बहुत्व को लेकर दो दण्डक कहना चाहिये । उससे अन्य दण्डक के प्रति नहीं। 'केवलदसणपज्जवेहिं जहा केवलणाणपज. वेहि जिस प्रकार केवलज्ञान की पर्यायों द्वारा जीवों में कृतयुग्मता कही गई है योजादिरूपता नहीं कही गई है क्योकि केवलज्ञान अनन्त और अवस्थित होता है उसी प्रकार केवलदर्शन की पर्यायों द्वारा भी जीवों १ समधी में हैं। उनसे. 'एव चक्खुदसण अचक्खुदसण ओहिदसणपज्जवेहि वि' का प्रमाणे यक्षुशन भने अन्यक्षुशन समधी पर्याय। દ્વારા પણ એકવચન અને બહુવચનથી જીવ સંબંધી બે દંડક કહેવા જોઈએ. 'नवर जस्स जं अस्थि तं भाणियव्वं' विशेषामे छे -२ ७१२.शिने જે જ્ઞાન હોય તે જ તેને કહેવું જોઈએ. અર્થાત્ જે જીવને વિર્ભાગજ્ઞાન હોય તેના પ્રતિ તે વિભંગજ્ઞાનના પર્યાયે દ્વારા જ તે જીવને એકપણું અને અનેપણથી બે દંડકો કહેવા જોઈએ. તેનાથી ભિન્ન દંડ કહેવા નહીં. 'केवलदसणपज्जवेहिं जहा केवलणाणपज्ज वेहिं' प्रमाणे वणज्ञानना पर्याय દ્વારા જેમાં કૃતયુગ્મપણું કહ્યું છે, જાદિપણું કહ્યું નથી. કેમકે કેવળજ્ઞાન અનંત છે. અને અવસ્થિત હોય છે. એ જ પ્રમાણે કેવળદર્શનના પર્યાયે भ० १०० શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫

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