Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 843
________________ ८२८ भगवतीसूत्रे तहेव वत्तव्यमा निरवसेसा' एतेषां खलु यथा परमाणु शुद्गलादीनाम् तथैव-वक्त. व्यता निरवशेषा। यथा-परमाणुपुद्गलो द्विपदेशिकस्कन्धाऽपेक्षयाऽधिको भवति, तथा-एकगुणकालकः स्कन्धो द्विगुणकालस्कन्धाऽपेक्षयाऽधिको भवतीत्यादिकं परमाणुपुद्गलादिप्रकरणवदेव बोध्यम् । 'एवं सव्वेसि वन-गंध-रसाणे' एवं-सर्वेषा वर्ण-गन्ध-रसानां परमाणुपुद्गलादिप्रकरणवदेव अल्पबहुस्वं वक्तव्यमिति । 'एएसिणं भंते !' एतेषां खलु भदन्त ! 'एगगुगकक्खडाणं दुगुणकक्खडाण य पोग्लाणं कयरे कयरेहितो दवट्ठयाए जाव विसेसाहिया वा' एकगुणकर्कशानों द्विगुणकर्कशानां च पुद्गलानां द्रव्यार्थतया कतरे कतरेभ्यो यावद्-विशेषाधिका वा प्रभुश्री उनसे कहते हैं-'एएसि णं जहा परमाणु पोग्गलाईणं तहेव वत्त. ब्धया निरवसेसा' हे गौतम ! जिस प्रकार से एक परमाणु पुद्गल द्विप्रदेशिक स्कन्ध की अपेक्षा अधिक कहा गया है उसी प्रकार से एकगुणकालक स्कन्ध द्विगुणकालक स्कन्ध की अपेक्षा से अधिक हैं। इत्यादि सर्व कथन परमाणुपुद्गल आदि के प्रकरण के जैसा यहां जानना चाहिये। ‘एवं सव्वेसि वन्न, गंध, रसाणं' इसी प्रकार से समस्त वर्गों का समस्त गंधों का और समस्त रसों का अल्पबहुत्व परमाणुपुद्गल आदि के प्रकरण के जैसा ही जानना चाहिये । अब गौतमस्वामी प्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं-'एएसिणं भंते ! एगगुणकक्खडा णं दुगुणकक्खडाण य पोग्गलाणं कयरे कयरेहिंतो दवट्टयाए जाव विसेसाहिया वा' एकगुणकर्कश और द्विगुणकर्कश युक्त पुद्गलों में द्रव्यरूप से कौन पुद्गल किन पुद्गलों से अल्प हैं ? कौन किन से बहुत हैं ? कौन किनके परा. प्रभुश्री तभने ४९ छे है-'एएसि णं जहा परमाणुपोग्गलाईणं तहेव वत्तव्वया निरवसेसा' गौतम रे प्रभाए । ५२म पुगत में प्रशवाय २४५ કરતાં વધારે કહેલ છે, એ જ પ્રમાણે એકગુણ કાળા વર્ણવાળા સ્કંધ બે ગુણ કાળા વર્ણવાળા કંધ કરતાં અધિક છે, વિગેરે પ્રકારનું સર્વ કથન પરમાણુ પુદ્ગલના પ્રકરણ પ્રમાણે અહીંયાં યાવત્ અસંખ્યાત ગુણ કાળા વર્ણવાળા २४५ सुधातुं सघणु ४थन समा. 'एवं सव्वेसि वन्न, गंध, रसाण मेगा પ્રમાણે સઘળા વર્ગોનું, સઘળા ગધેનું અને સઘળા રસનું અ૮૫ બહુપણું પરમાણુ પુદ્ગલના પ્રકરણ પ્રમાણે સમજવું જોઈએ. वे श्री गौतमस्वामी प्रभुश्रीन मे पूछे छ }-'एएसिणं भंते ! एगगुणकक्खडाणं दुगुणकक्खड़ाण य पोग्गलाणं कयरे कयरेहितो दव्वयाए जाव विसेमाहिया वा' से शुष्णु ४४ अने में शुष्य ४ शाा पुगतामा द्रव्यपाथी કયા પુદ્ગલે કયા પુદગલે કરતાં અલ્પ-છેડા છે? ક્યા પુદ્ગલે કયા પુલો કરતાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫

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