Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
प्रतरद्वयसामीप्यात तिरश्चीननया उत्थितायाश्च लोकमस्पृशन्त्यः स्थितास्ता वस्तु. स्वभावात् कृतयुग्मा भवन्तीति । अत्र यातादेन सिय तेोयाओ सिय दावरजुम्माओं' इत्यनयोः संग्रहो भरतीति तत्र-याः श्रेणयः क्षुल्लक-प्रतरद्वयस्याधस्त. ना दुपरितनाद्वा पतरात् समुत्थिता स्ताः श्रेणय स्योजाः । यस्मात्-क्षुल्लकमतरद्वयस्याध उपरिच प्रदेशतो लोकस्य वृद्धिभावेनाऽलोकस्य प्रदेशत एव हानिभावात् एकैकस्य प्रदेशस्थाऽलोकश्रणीभ्योऽपगमो-दूरीभवतीयों भवति । एवं तदनन्तराभ्यामुत्थिताद्वापरयुग्माः। 'सिय कलि भोगाओ' इति-तदनन्तराभ्यामेवोत्थिताः कल्योजाः, एवं पुनस्ता एव यथ संभत्रं वाच्या इति । ‘एवं-पाईण. प्रतर बय के पास से तिरछी निकली हैं और जो लोक का स्पर्श नहीं करके स्थित हैं वे वस्तुस्वभाव को लेकर कृतयुग्मरूप होती है। यहां यावत्पद से 'सिय तेओयाओ सिय दावा जुम्माओ' इन दोनों का ग्रहण हुआ हैं । इनमें जो श्रेणियां प्रतरद्वय के नीचे से अथवा ऊपर के प्रतर से उठी हुई हैं वे श्रेणियां योजरूप होती हैं क्यों कि प्रतर द्वय के नीचे एवं कार के प्रदेश से लोक की वृद्धि होती है इससे अलोक की प्रदेश की ही अपेक्षा से हानि होती है, अतः एक एक प्रदेश का अलोक की श्रेणियों से अपगम होता है। इन दोनों प्रदेशों के अनन्तर ही उस्थित अलोकाकाश की श्रेणियां हैं वे छापरयुग्मरूप होती है। सिय कलियोगाओ' इन द्वापरयुग्मरूप श्रेणियों के बाद उत्थित जो श्रेणियां हैं वे कल्पोजरूप हैं। ‘एवं पाईणपडीणाययाओ वि' इसी प्रकार से पूर्व से पश्चिम तक लम्बी जो अलोकाकाश की श्रेणियाँ हैं -वे भी प्रदेशरूप से कदाचित् योजरूप होती हैं कदाचित् छापरयुग्मरूप होती हैं एवं कदाचित् कल्पोजरूरी होती है-'एवं दाहिणुत्तराययाओ वि' इसी प्रकार से दक्षिण उत्तर आयन श्रेणियां भी कदाचित् રૂપ છે. કેટલીક દ્વાપરયુગ્મ રૂપ છે. અને કેટલીક કલ્યાજ રૂપ છે, તેમાં જે શ્રેણિયે સુકલક બે પ્રતની પાસેથી તિરછી નીકળેલી છે, અને લેકને સ્પર્શ કર્યા વિના જ રહી છે, તે વસ્તુ સ્વભાવથી કૃતયુગ્મ રૂપ હોય છે. અહીંયાં યાવपहथी 'सिय तेओयाओ, सिय दावरजुम्माओ' मा भन्ने युमा अर राय। છે, આમાં જે શ્રેણિયે બે પ્રતરની નીચેથી અથવા ઉપરના પ્રતરથી ઉઠેલી છે, તે શ્રેણિયે જરૂપ હોય છે કેમકે બે પ્રતરાની નીચે ઉપરના પ્રદેશોમાંથી લેકની વૃદ્ધિ થાય છે. તેથી અલકની પ્રદેશની અપેક્ષાએ હાની થાય છે. જેથી એક એક પ્રદેશનું અલેકની શ્રેણિયથી અપગમ થાય છે. અર્થાત્ ઘટે છે. આ બંને પ્રદેશોની पासे म शनी श्रेशियो छे. ते५२युम ३५ डाय छे. 'सिय कलियो
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫