Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसरे
समर्थितम् तेनैव रूपेण द्वीन्द्रियजीवानामपि कृतयुग्मादि चतूरूपत्वमवगन्तव्यमिति । 'एवं जाव वेमाणियाणं' एवं यावद् वैमानिकानाम् त्रीन्द्रियादारभ्य वैमानिकपर्यन्तजीवानां नारकवदेव कृतयुग्मादिरूपत्वमवगन्तव्यमिति । 'सिद्धा. णं जहा वणस्सइकाइयाणं' सिद्धानां यथा-वनस्पतिकायिकानाम्-स्थात्-सिद्धाः कृतयुग्माः, स्यात्-त्र्योजाः, स्यात्-द्वापरयुग्मा, स्यात्-कल्योजा इति । ____ अथ कृतयुग्मादिराशिभिरेव द्रव्याणां निरूपणाय इदमाह -'काविहाणं भंते' इत्यादि । 'कइविहाणं भंते ! सम्बदव्या पन्नत्ता' कतिविधानि खल्ल भदन्त ! सर्वद्रव्याणि प्रज्ञप्तानीति प्रश्नः ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'छबिहा सम्बदबा पन्नत्ता'-पइविधानि-षट्पकारकाणि सर्वद्रव्याणि प्रज्ञप्तानि । नेरइया णं' जिस प्रकार से नारक जीवों के कृतयुग्मादिरूपचार राशियों का समर्थन किया गया है उसी प्रकार से द्वीन्द्रियादिक जीवों में भी कृत. युग्मादिरूपता का समर्थन करना चाहिये 'एवं जाव वेमाणियाणं' इसी प्रकार से तेइन्द्रिय से लेकर वैमानिक तक के जीवों में भी कृतयुग्मादिरूपता का कथन जानना चाहिये । 'सिद्धाणं जहा वणस्सइकाइयाणं' सिद्धों में कृतयुग्मादि रूपता का कथन वनस्पतिकायिक जीवों के जैसा करना चाहिये। सिद्ध जीव कदाचित् कृतयुग्मरूप होते हैं कदाचित् वे योजरूप होते हैं, कदाचित् वे द्वापरयुग्मरूप होते हैं और कदाचित् वे कल्योजरूप होते हैं। ____अब श्रीगौतमस्वामी सर्व द्रव्यके विषय में प्रभुश्री को प्रश्न करते हैं 'काविहा णं भंते ! सव्वव्वा पण्णत्ता' हे भगवन् समस्त द्रव्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? श्रीगौतमस्वामी के इस प्रश्न का समाधान करते हुए प्रभुश्री उनसे कहते हैं-'छब्धिहा सव्वदव्या છમાં કૃતયુગ્મ વિગેરે રૂપ ચાર રાશિનું મંડન કર્યું છે, એજ પ્રમાણે બે ઈન્દ્રિય વિગેરે માં પણ કૃતયુગ્મ વિગેરે પણાનું સમર્થન કરવું नये. 'एवं जाव वेमाणियाणं' मे०४ शत र छन्द्रयोथी वन वैमानि સુધીના જીવમાં પણ કૃતયુગ્મ વિગેરે પ્રકારનું કથન સમજવું જોઈએ. 'सिद्धाणं जहा वणस्सइकाइयाणं' सिद्धीमत तयुम विशे२५यानु जयन વનસ્પતિકાયિક જીવના કથન પ્રમાણે કરવું જોઈએ. સિદ્ધ જીવે કઈ વાર કૃતયુગ્મ રૂપ હોય છે. કેઈ વાર તેઓ જ રૂપ હોય છે, કઈ વાર તેઓ દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે. અને કદાચિત્ તેઓ કલ્યાજ રૂપ પણ હોય છે.
व श्री गौतमस्वामी प्रभु श्रीन पूछे छे ४-'कइविहा णं भंते ! सव्व. दव्या पण्णत्ता' सन् स द्रव्यो ४८॥ १२ना या छ ? श्री गौतम
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫