Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ. ३ सू०५ लोकस्य परिमाणनिरूपणम्
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नो अनन्ता कदाचित् संख्याताः कदाचिद् असंख्याताः भवन्ति किन्तु अनन्ता नमनन्तीति । 'उडूमहाययाओ नो संखेज्जाओ असंखेज्जाओ नो अनंतयो' ऊर्ध्याधि आयता अषि श्रेणयो नो संख्येयाः किन्तु असंख्याताः, तथा नो अनन्ताः । यत स्वासां श्रेणीनामूर्ध्वलोकान्तादधोलोकान्ते, अधोलोकान्तादूर्ध्वलोकान्ते प्रतिधातः अवस्ताः श्रेणयोऽसंख्यातमदेशा एवेति ।
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या अपि अधोलोककोणतो ब्रह्मलोकतिर्यगृमध्यमान्ताद्वा उचिष्ठन्ते ता अपि -न संख्यातप्रदेशा लभ्यन्ते । अस्मादेव सूचनादिति । अथालोकाकाशश्रेणिविषये प्राह- 'अलोमागास सेदीओ णं भंते' अलोकाकाशश्रेणयः खलु भदन्त ! 'परसट्टयाए पुच्छा' ? प्रदेशार्थतया पृच्छा : हे भदन्त ! अलोकाकाशश्रेणयः किं पूर्व पश्चिम आयत और दक्षिण उत्तर आयतश्रेणियां भी लोकाकाश श्रेणियों की तरह कदाचित् संख्यात कदाचित् असंख्यात होती है परन्तु अनन्त नहीं होती है। तथा ऊर्ध्व अधः आयत श्रेणियां न संख्यात होती हैं और न अनन्त होती हैं किन्तु असंख्यात ही होती हैं। इसी बातको सूत्रकार 'उड्डूमहाययाओ नो संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, नो अनंताओ' इस सूत्रद्वारा स्पष्ट कर रहे हैं ऊर्ध्वलोकान्त से लेकर अधोलोकान्त तक और अधोलोकान्त से ऊर्ध्वलोकान्त तक में उन श्रेणियों का प्रतिघात नहीं है। इसलिये ये श्रेणियां असंख्यात प्रदेशों वाली ही हैं। तथा जो श्रेणियां अधोलोक के कोने से अथवा ब्रह्मलोक के तिर्यग्मध्यप्रान्त से निकली हैं वे भी इसी सूत्र के कथनानुसार संख्यातप्रदेशों वाली नहीं हैं।
अब श्री गौतमस्वामी प्रभु श्री से ऐसा पूछते हैं- 'अलोगागाससेढीओ णं भंते ! पएसट्टयाए पुच्छा' हे भदन्त ! अलोकाकाश की લેાકાકાશ શ્રેણિયાની જેમ કેાઈવાર સ ંખ્યાત અને કાઇવાર અસંખ્યાત હાય છે પણુ અનંત હોતી નથી, તથા ઉપર નીચે આયત-લાંખી શ્રેગ્રીય સંખ્યાત હૈ।તી નથી તેમ અનન્ત પણ હોતી નથી પરંતુ અસંખ્યાત જ હોય છે. येन वातने सूत्रारे 'उड्ढमहाययाओ नो सौंखेज्जाओ अस खेज्जाओ ना अणताओ' मा सूत्र द्वारा स्पष्ट पुरेल छे उपरना बोअन्तथी बने नीयेना લેકાન્ત સુધી અને નીચેના લેાકાન્તથી ઉપરના લેાકાત સુધીમાં શ્રેીયાના પ્રતિઘાત થાય છે. તેથી થ્રેડ્ડીએ અસંખ્યાત પ્રદેશોવાળી જ છે. તથા જે શ્રેણીચા નીચેના લેાકના ખૂણુામાંથી અથવા બ્રહ્મલેાકના તિર્યંચ મધ્ય પ્રાંતથી નીકળેલ છે તે પણ આજ સૂત્રના કથન પ્રમાણે સ ́ખ્યાત પ્રદેશોવાળી નથી, हवे गौतमस्वाभी अनुने वु छे छे - 'अलोगागास से ढीओ णं भंते! पट्टयाए पुच्छा' हे भगवन् भयो अशनी श्रेणीया अहेशानी अपेक्षाथी शु
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫